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________________ अन्विष्टःस्यात् प्रमातैव पापदोषादि वर्जितः ।। देहात्मप्रत्ययो यद वत् प्रमाणत्वेन कल्पितः । लौकिकं तद्वदेवेदं प्रमाणं त्वात्मनिश्चयात् ।। (ब्र० सू० शां० भा० १/१/४) भामतीकार वाचस्पति मिश्र ने उपर्युक्त श्लोकों का 'ब्रह्मविदां गाथा' कहकर वर्णन किया है परन्तु नरसिंह स्वरुप के शिष्य आत्मस्वरूप द्वारा रचित पदमपाद की पञ्चपादिका की टीका प्रबोध परिशोधनी की अनुसार उपर्युक्त श्लोक सुन्दर पाण्ड्य कृत ही बतलाये जाते है। अमलानन्द के कल्पतरु (३/३/२५) में सुन्दर पाण्ड्य के वचन 'निःश्रेण्यारोहणप्राप्यम्' उद्धत है।' गैड़पाद- अद्वैत वेदान्त के प्रतिष्ठापक आदि आचार्य शङ्कर के प्राचार्य श्री गौड़पाद है। इनकी प्रसिद्ध कृति “माण्डूक्यकारिका” है। गौड़पाद के अद्वैत सिद्धान्त से मिलता-जुलता आचार्य का अद्वैत वेदान्त है। शङ्कर का मायावाद गौड़पाद से प्रभावित है। क्योकि उपनिपदों में स्पप्ट रूप से माया का उल्लेख न होकर मायावाद के पूर्वाभास की झलक मिलती है। विश्व प्रपञ्च की शून्यता का स्पष्ट प्रतिपादन बौद्ध सम्प्रदायों में मुख्यतया विज्ञानवाद और भारतीय दर्शन में पाया जाता है। गौड़पाद की जगत को 'अविद्यात्मक या मायिक' बतलाये हैं। आचार्य शङ्कर ने गौड़पाद निर्मित माण्डूक्य कारिका पर अपने भाष्य में परमगुरु को नमस्कार, किया है 'यस्तं पूज्याभिपूज्यं परम गुरुममुं पादपातैनतोऽस्मि । (मा० का० शा० भा० अन्ते ब्र० सू० शां० भा०) में आचार्य शङ्कर ने परमगुरु गौड़पाद का नामोल्लेख बड़े आदर के साथ किया है- और दो स्थलों पर उल्लेख किया है। श्री शङ्कर सम्प्रदाय में गुरुवन्दन परम्परा में इस प्रकार गुरुनामावली का उल्लेख प्राप्त होता है। 'ब्र० सू०३/३/२५ शाकर भा० कल्पतरु पृ० ७६५ 'प्राचार्य से तात्पर्य आचार्य के आचार्य अर्थात् गोविन्द भगवतपाद के गुरु। ३ क. सम्प्रदाय विदो वदन्ति (१/४/१४) ख. वेदान्तार्थ सम्प्रदायविभिराचार्यः । (२/१/६) 224
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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