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________________ १२. मण्डन मिश्र और सुरेश्वर ने भी इनके मत का निराकरण किया है। आचार्य भर्तृप्रपञ्च- आचार्य भर्तृप्रपञ्च एक प्रख्यात वेदान्ती थे। उनका मत भेदा-भेदवाद है। इनका कोई भी व्याख्या ग्रन्थ, ब्रह्मसूत्रों पर लिखा हुआ उपलब्ध नहीं होता है। संक्षेपशारीरिक के टीकाकार मधुसूदन सरस्वती ने भर्तृप्रपञ्च को ब्रह्मसूत्र का भाप्यकार मानते है 'कैश्चित् तत् सूत्रं व्याचक्षाणै भर्तृप्रपंचादिभिः।' यामुनाचार्य ने अपने 'सिद्धित्रय' में भर्तृप्रपञ्च को वेदान्त दर्शन का लेखक स्वीकार किया है। इसके अतिरिक्त कठोपनिपद तथा बृहदारण्यक उपनिषद् पर भी भाप्य लिखे थे। दार्शनिक सिद्धान्त- इनके सिद्धान्त को भेदा भेदवाद, द्वैताद्वैतवाद अथवा अनेकान्तवाद कहा जाता है। परमार्थ ब्रह्म में एक है जगतरुप में अनेक है। जीव नाना तथा परमात्मा एकदेश मात्र है। ब्रह्म में अनेक जीवों की सत्ता होने के कारण ही वह अनेक रुप है और मूलतः ब्रह्म रुप में वह एक है। जीव द्रप्टा, कर्ता, भोक्ता, है। वे कर्मज्ञान समुच्चयवादी थे। ___ भर्तृप्रपञ्च के अनुयायी चार सम्प्रदायों में बंटे थे, इससे शङ्कर पूर्व ही वेदान्त का प्रचार हुआ। भर्तृप्रपञ्च सतब्रह्म की आठ अवस्थाओं को मानते थे। जो निम्न है(१) अर्न्तयामी, (२) साक्षी (३) अव्याकृत (४) सूत्रात्मा (५) विराट (६) देवता (७) जाति (८) पिण्ड। इनके कुछ अनुयायी (भर्तृप्रपञ्च के) ब्रह्म की तीन अवस्था को मानते है। अक्षर, अर्तयामी, क्षेत्रज्ञ। और कुछ पांच, कुछ आठ अवस्था को मानते है। कुछ लोग इन अवस्थाओं को अक्षर की शक्ति मानते है तो कुछ लोग इन्हें विकार मानते है। परिणामवाद मधुसूदन सरस्वती की टीका - संक्षेप शारीरक, १/७ पर। 221
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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