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________________ जीव एक ही शब्द ब्रह्म काल नामक स्वात्रन्त्रयशक्ति (अविद्या) के द्वारा भोक्ता, - भोक्तव्य और भोगरुप से तथा दृश्य, दर्शन तथा द्रष्टा रूप से भासित होता है जैसा कि भर्तृहरि ने कहा है " एकस्य सर्ववीजस्य यस्य चेयमनेकधा ।। भोक्तृभोक्तव्य रूपेण भोगरूपेण च स्थितिः " ।। ( वा० प० १ / ४) अर्थात् सबके बीज रूप एकमात्र जिस की (शब्दब्रह्म ) की भोक्ता, भोक्तव्य रूप से तथा भोग रूप से अनेक प्रकार की होती है । यहां भोक्ता (जीव) है भोक्तव्य विषय हो, भोग है विषय भोग से उत्पन्न सुख-दुख आदि का अनुभव है । दृष्य विषय है, द्रष्टा जीव है और दर्शन साध्य स्वभाव क्रिया है । ब्रह्म और जीव में वस्तुतः कोई भेद नहीं है। किन्तु ब्रह्म ही जीवरूप से और भोक्ता के रूप से अवस्थित रहता है। सर्वेश्वर, सर्वज्ञ परमात्मा ही भोक्ता जीव रूप भी होता है, यह बात भर्तृहरि ने स्वरचित वृत्ति में कही है । अर्थात् अपने से अपने को अलग करके पृथक-पृथक भावों की सृष्टि करके सर्वेश्वर, सर्वमय, भोक्ता स्वप्न में प्रवृत्त होता है । अध्यारापवा : विधि अध्यारोपवाद - विधि का तात्पर्य असत्य से सत्य की ओर चलना है ( असतो मा सद् गमय) इस प्रसंग में भर्तृहरि कहते है कि जैसे बालकों को असत्य के द्वारा (अक्षरों को वास्तविकता प्रदान करके) शब्द का ज्ञान कराया जाता है।' 'प्रविभज्यात्मनात्मान सृष्टवा भावान् पृथन्विधान । सर्वेश्वरः सर्वमयः स्वप्ने भोक्ता प्रर्वतते ।। वा० प० १ / १२८ स्वोवृत्ती * उपाय शिक्षमाणानां बालानामुपलालनाः । असत्ये वर्त्मनि स्थित्वा ततः सत्यं समीहते ।। वा० प० २ / २४० 207
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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