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________________ द्वावुपादान शब्देषु शब्दौ शब्दविदो विदुः । एको निमित्तं शब्दानाम् परोऽथे प्रयुज्यते ।। (वा० प० १/४४) स्फोटवाद ऋग्वेद में वाक् के चार प्रकार परा, पश्यन्ती, मध्यमा और बखारी बताये गये है भर्तृहरि इनमें से केवल अन्तिम तीन को मानते है। इनके मत से शब्द तत्त्व की तीन अवस्थाएं है- पश्यन्ती, मध्यमा और बैखारी। पश्यन्ती में शब्द और अर्थ का भेद नही है, मध्यमा में शब्द और अर्थ के बीच भेद है, किन्तु संयोग रहता है। यह मानसिक अवस्था है इसमें शब्द प्रकाशक है अर्थ प्रकाश्य है इसी अवस्था में 'शब्द' को भर्तृहरि ने 'स्फोट' का नाम दिया है। बैखरी शब्द की अभिव्यक्त अवस्था है इसे अन्य लोग सुन सकते है, मनुष्य आपसी व्यवहार में इसी का प्रयोग करते है। शब्द की आत्मा स्फोट और ध्वनि है। ध्वनि अनित्य है, कार्य है व्यक्ति है, स्फोट नित्य है, कारण है जाति है। स्फोटवाद शब्दार्थ की एकता का सिद्धान्त है- 'स्फोटः नित्यः सत्तवात् जातिवत् ।' सत्ता द्वैतवाद पूर्वोक्त शब्दाद्वैतवाद ही सत्ताद्वैतवाद है। यहां सत्तापद से जाति पद विवाक्षित है। जाति शब्दार्थ है। सत्ता नित्य है और अनुस्यूत है इसलिये सत्ता ही 'ब्रह्म' है। इससे सत्ता ब्रह्मवाद और शब्दब्रह्मवाद एक ही है। सत्ता द्वैत ही भावाद्वैतपद से भी अभिहित होता है। श्री मण्डन मिश्र भावाद्वैतवादी थे। सत्ता पदार्थ और भावपदार्थ समानार्थक है जैसे सत्ता नित्य है वैसे भाव भी नित्य है यह बात वाक्यपदीय विशेष रूप से जाति समुद्देश, द्रव्य समुद्देश तथा सम्बन्ध समुद्देश में प्रतिपादित है। सत्ता और भाव एक ही तत्त्व है। यथा"तत्र च भावस्य परमार्थ रूपस्य सत्ताताकस्य"। (वा० प० का० ३ जाए ख० ३६) 266
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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