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________________ प्रतिपादितः । पुराणों में भी इन्हें वेदव्यास का शिष्य बतलाया गया है। इन्होंने वेदव्यास से सामवेद और महाभारत की शिक्षा प्राप्त की थी। मीमांसा दर्शन के अतिरिक्त जैमिनि ने भारतसंहिता जिसे 'जैमिनिभारत' भी कहते हैं की रचना की थी। ७. आचार्यवादरि आचार्य वादरि का उल्लेख वादरायण के ब्रह्मसूत्र' में चार बार किया गया है, तथा जैमिनि के मीमसासूत्र में भी चार बार उल्लेख किया गया है। आचार्य बादरिके दार्शनिक सिद्धान्तों की रूपरेखा के विषय में पं० राममूर्ति शर्मा ने अपने ग्रन्थ 'अद्वैतवेदान्त' में लिखा है- १. आचार्य बादरि वैदिक कर्म में प्रत्येक वर्ण के व्यक्ति का अधिकार स्वीकार करते हैं। यह सिद्धान्त आचार्य की अद्वैत परक बुद्धि का ही परिचायक है। २.उपनिषदों में कहीं-कहीं सर्वव्यापी ईश्वर का प्रादेश मात्र रूप से वर्णन मिलता है। इस सम्बन्ध में उपपत्ति देते हुये बादरि का विचार है कि मन प्रादेश मात्र हृदय में रहने के कारण शास्त्रों में प्रादेश मात्र कहा जाता उस प्रादेशमात्र मन से ही ईश्वर का स्मरण होता है, इसीलिए वह (ईश्वर) प्रादेशमात्र रूप से वर्णित होता है।" द्वितीय स्थल का विषय छान्दोग्य उपनिषद (५।१०७) के "तद्य इह रमणीयचरणाः” इत्यादि सन्दर्भगत 'चरण' पद के प्रयोग के आधार पर है। इस चरण पद के प्रयोग को लेकर विद्वानों में मतभेद है। बह्मसूत्रकार ने वादरि का मत बताया है कि उपनिषद के उक्त प्रसंग में चरण पद सुकृत-दुष्कृत कर्मों (भले बुरे कर्मों का) का वाचक है। तृतीय स्थल पर छान्दोग्योपनिषद के (४ १५.१५) के 'स एनान ब्रह्म गमयति' के आधार पर यह विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इसमें प्रयुक्त ब्रह्म शब्द का अर्थ बादरि ने 1 श्री मुरलीधरपण्डेय- श्रीशकरात प्रागद्वैतवादः पृ० ६४-६५ 'ब्रह्म सूत्र १२।३०३१/११, ४३१७, ४।४।१० 3 मीमांसा सूत्र ३।१।३, ६।१।२७, ८।३।६, १।२।२३ (सेक्रड बुक्स आफ दि हिन्दुज के अन्तर्गत प्रकाशित) 4 पं० राममूर्ति- अद्वैतवेदान्त। पृ० १२६ 193
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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