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________________ प्राचीनकाल में हमारे देश में ऐतिहासिक शोध द्वारा सत्य का पतालगाने की प्रवृत्ति बहुत कम थी। अतएव समुचित तथ्यों और प्रमाणों द्वारा सिद्ध किये बिना ही, जिसके विचार में जो उचित जान पड़ता वह कह डालता था। इसलिये प्रायः यह हुआ कि किसी आदमी ने कोई ग्रन्थ रचा और अपने गुरू या किसी अन्य के नाम से उसे प्रचलित कर दिया। ऐसे विषय में ऐतिहासिक तथ्यों का अनुसंधान करने वाले के लिये सत्य तक पहुंचना बड़ा जोखिम का काम था। अतः कृष्ण के विषय में सही निष्कर्ष पर पहुंचना प्रायः असंभव है। यह मनुष्य का स्वभाव होता है कि वह किसी भी महान पुरूष के स्वभाव में विभिन्न रूप की काल्पनिक अतिमानवीय विशेषताएं जोड़ देता है। कृष्ण के विषय में भी ऐसा ही हुआ होगा किन्तु यह संभव प्रतीत होता है कि वह एक राजा थे। किन्तु एक बात ध्यातव्य है कि गीता का लेखक चाहे जो भी व्यक्ति रहाहो, हमें उसमें वही शिक्षाएं मिलती हैं जो समस्त महाभारत में है। निश्चित रूप से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि महाभारत काल में किसी महान-पुरूष का अभ्युदय हुआ, जिसने तत्कालीन समाज को इस नये परिधान में ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया। यह भी कारण था कि प्राचीन समय में जब एक धर्म सम्प्रदाय के पश्चात् दूसरे धर्मसम्प्रदाय का अभ्युदय होता था, तब किसी न किसी नये धर्मशास्त्र का भी प्रणयन होता था और वह उनमें व्यवहृत होने लगता था। यह भी होता था कि समय व्यतीत होने पर धर्म सम्प्रदाय का अस्तित्व मिट गया किन्तु धर्मशास्त्र बचा रह गया। इस प्रकार यह बिल्कुल संभव है कि गीता किसी ऐसे धर्म सम्प्रदाय का शास्त्र रही हो जिसने अपने उच्च एवं श्रेष्ठ विचारों को इस पवित्र ग्रन्थ में समाविष्ट किया हो। स्वामी विवेकानन्द अपने ग्रन्थ भगवान श्रीकृष्ण और भगवद्गीता में लिखते हैं कि "अब हमें यह देखना चाहिये कि गीता में क्या है? उपनिषदों का अध्ययन करे तो देखते हैं कि बहुत से असम्बद्ध विषयों की भूल-भूलैय्या में भटकने पर सहसा किसी 158
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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