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________________ का भाष्य के बिना नही हो सकता है। आपस्तम्ब यज्ञ परिभाषा में ब्राह्मण का लक्षण इस प्रकार बतलाया गया है- 'याज्ञिक कर्मों में प्रवृत्त करने वाल ही ब्राह्मण है'- "नास्त्येतद् ब्राह्मणोत्यत्र लक्षणं विद्यतेऽथवा।" इससे स्पष्ट है कि ब्राह्मण विधिरूप या विधायक रूप है क्योंकि यह कर्म में प्रवृत्त करता है। जैमिनी ऋषि के मत में- जो मंत्र नहीं है वही ब्राह्मण है यह ब्राह्मण का लक्षण है- अर्थात् ब्राह्मण और मंत्र दोनों ही वेद है। मंत्र के शेष भाग को ‘ब्राह्मण' कहते हैं। 'नास्तीयन्तो वेदभागा इति क्लुप्तेरभावत्। मंत्रश्च ब्राह्मणश्चेति द्वौ भागौ तेन मंत्रतः अन्यद् ब्राह्मणमित्येतद् भवेद लक्षणम्।।' (जैमिनि न्या० मा० वि० २/१/२४-२५) इस प्रकार मंत्र और ब्राह्मण दोनों का ही सम्मिलित नाम वेद है। उदाहरणार्थ ऋग्वेद का मंत्र है-यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन। ते ह नाकं महिमानः सचन्तयत्र पूर्वसाध्याः सन्तिदेवाः।। (ऋग्वेद १/१६४/५०, १०/६०/१६) इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि ब्राह्मण मंत्रों के भाष्य है ब्राह्मण ग्रन्थों में यज्ञ सम्बन्धी पूर्ण विवेचन प्राप्त होता है। ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रन्थ है- ऐतरेय और शांखायन १-ऐतरेय में ४० अध्याय है जो आठ पञ्चकों में विभक्त है इसके रचयिता महीदास ऐतरेय माने जाते हैं। सप्तम पञ्चिका में हरिश्चन्द्र की कथा का वर्णन है। २-शांखायन ब्राह्मण- ऋग्वेद का यह दूसरा ब्राह्मण है यह ३० अध्यायों में विभक्त है इसके रचयिता कौषीतकि माने जाते हैं। ३-शतपथ ब्राह्मण- इसके रचयिता याज्ञवल्क्य ऋषि हैं। यह यजुर्वेदीय ब्राह्मण हैं। इसमें यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- १–माध्यन्दिन तथा २- काण्व शाखा। माध्यन्दिन के अनुसार इसमें एक सो अध्याय १४ काण्डों में विभक्त है। एक सौ अध्याय के कारण ही संभवतः यह शतपथ ब्राह्मण कहलाता है। इसमें सर्वप्रथम जनमेजय का वर्णन है कालिदास के दो प्रसिद्ध नाटकों की समाग्री भी इसमें प्राप्त होती है ये दो हैं- पुरूरवा और उर्वशी (विक्रमोवीय) और शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत का वर्णन है इसमें मनु और मत्स्य की कथा भी पायी 136
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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