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________________ ब्राहमण परिवार हुआ था। तथा इनका निर्वाणकाल ८२० ई० माना जाता है । ३२ वर्ष की स्वल्प आयु में ही आचार्य ने अपनी प्रतिभा से अपने समकालीनों को चकित कर दिया । इनके पिता का नाम शिवगुरु तथा माता का नाम विशिष्टा था। इन्होंने वेदों, उपनिषदों आदि का गहन अध्ययन करके वैचारिक जगत में एक तूफान सा उठा दिया । उन्होंने आचार्य के रुप में सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया और बौद्ध धर्म पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने देश के विविध स्थानों पर मठ स्थापित किये जैसे- दक्षिण भारत में श्रृंगेरीमठ, उ० भारत में जोशी मठ (बदरिकाश्रम), पूर्वीभारत में गोवर्धन मठ (पुरी) और पश्चिम भारत में शारदामठ (द्वारका) । शंकराचार्य मानव समाज को धर्म का पथ प्रदर्शन किये तथा एक कुशल धर्मसुधारक थे। शङ्कराचार्य ने प्रस्थानत्रयी पर भाष्य लिखा, सौन्दर्य लहरी विवेक चूड़ामणि आदि अनेक रचनायें हैं । शङ्कराचार्य का सिद्धान्त एकेश्वरवाद पर आधारित है और इससे जिस आदर्श प्रणाली का जन्म हुआ उसे 'अद्वैत वेदान्त' के नाम से जाना जाता है । शङ्कराचार्य भाट्ट मीमांसक द्वारा स्वीकृत छः प्रमाणों को स्वीकार करते हैं- प्रत्यक्ष अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति, अनुपलब्धि | शंकराचार्य सत्कार्यवाद को मानते हैं तथा असत्कार्यवाद का खण्डन करते हैं। सत्कार्यवाद के दो रूप परिणामवाद और विषर्तवाद । सांख्य तथा रामानुज कारण का कार्य में तात्विक परिवर्तन मानते हैं जैसे दूध से दही जमना । इसी से सांख्य का मत 'प्रकृति-परिणामवाद' कहलाता है और रामानुज का मत 'ब्रहम - परिणामवाद' कहलाता है । शङ्कर इन दोनों से अलग 'विवर्तवाद' को स्वीकार करते हैं । शङ्कर मानते हैं कि कारण तो सत् है किन्तु कार्य केवल उसका आभास मात्र है। इसलिये यह जगत प्रपंच ब्रह्म का विवर्त मात्र है। आचार्य शङ्कर ने अपने सम्पूर्ण अद्वैत वेदान्त को इसी श्लोकार्द्ध से व्यक्त किया है- 'ब्रहम सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रहमैव नापरः। अर्थात् ब्रह्म ही सत्य है, जगत् मिथ्या है, और जीव ब्रहम ही है, उससे भिन्न नहीं है । ब्रह्म और 118
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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