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________________ शङ्कर मिश्र ने 'उपस्कर' नामक अपने ग्रन्थ में 'अभ्युदय' का अर्थ तत्वज्ञान किया है और निःश्रेयस का अर्थ दुःख की आत्यन्तिक निवृत्ति किया है। अर्थात शंकर मिश्र ने माना है कि तत्वज्ञान और निःश्रेयस का साधक धर्म है। आचार्य प्रशस्तपाद ने वैशेषिक दर्शन के भाष्य की रचना प्रारम्भ करते हुये सूत्रकार द्वारा लक्षित धर्म को पदार्थ धर्म के रूप में अभिहित किया है- यथा 'प्रणम्य हेतुमीश्वरं मुनि कणादमन्वतः । पदार्थ धर्म संग्रहः प्रवक्ष्यते महोदयः ।। इस पद्य से यह ज्ञात होता है कि पदार्थ और लक्षित धर्म ज्ञान केवल तभी सच्चा होता है जब वह वस्तुओं की प्रकृति के अनुरूप होता है अन्यथा व झूठा है। सत्य की पुष्टि केवल ऐसी व्यवहारिक क्रियाओं के द्वारा ही की जा सकती है जो उस ज्ञान पर आधरित हो और सफल सिद्ध हो। विभिन्न पदार्थों के सारतत्व के ज्ञान, उनमें साम्यता और विषमता, समानता और भिन्नता के ज्ञान से ही सर्वोपरि कल्याण होता है। कणाद ने इस प्रकार स्पष्ट किया है कि "धर्म विशेष प्रसूतात द्रव्य गुण कर्म सामान्य विशेष समवायानां पदार्थानां साधर्म्यवैधाभ्यां तत्वज्ञानान्निःश्रेयसम"। (कणाद वैशे०सू० १-४) मुनि ने इस सूत्र से बताया है कि पदार्थ का साधर्म्य – वैधर्म्य मूलक ज्ञान धर्म विशेष से प्रसूत है। धर्म विशेष के कथन से यह प्रमाणित होता है कि साधर्म्य- वैधर्म्य मूलक पदार्थ तत्वज्ञान का उदय जिस धर्म से होता है वह उस पदार्थ धर्म से भिन्न है जिसका व्याख्यान करने के लिये वैशेषिक दर्शन की रचना हुई है किन्तु वैशेषिक दर्शन में जिस धर्म विशेष को प्रधान रुप से वर्णित किया गया है वह पदार्थों का साधर्म्यवैधर्म्य रुप है। साधर्म्य से तात्पर्य है- पदार्थ का समान धर्म- अनुगत धर्म जो कतिपय पदार्थों का संग्राहक होता है, वैधर्म्य का अर्थ है पदार्थ का व्याकृत धर्म, अर्थात जो धर्म जिस पदार्थ में नहीं रहता है उस पदार्थ के सम्बन्ध में वह धर्म ज्ञेयत्व, वाच्यत्व सभी पदार्थों का साधर्म्य है। द्रव्यत्व, गुणत्व आदि कम से द्रव्य, गुण आदि का साधर्म्य है। 88
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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