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________________ न्या० सू० भाष्यकार- वात्स्यायन ने गौतम के न्यायसूत्र 'तदत्यन्तविमोक्षोऽपवर्गः' (१/१/२२) की व्याख्या कर दुःख की आत्यन्तिक निवृत्ति को ही 'अपवर्ग' कहा गया है 19 २ - वैशेषि दर्शन आस्तिक दर्शन के अन्तर्गत वैशेषिक दर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। वैशेषिक दर्शन का मुख्य प्रणेता कणाद मुनि को माना जाता है। महर्षि कणाद के नाम पर इसे 'कणाद दर्शन' भी कहा जाता है। उनका एक अन्य नाम 'उलूक' भी था जिसके कारण 'औलूक्य दर्शन' भी कहा जाता है। 'विशेष' नाम क अतिदिपदार्थ की व्याख्या करने के कारण इस दर्शन का नाम वैशेषिक पड़ा । वैशेषिक दर्शन बहुतत्ववादी वस्तुवाद पर बल देता है । कणाद और पाणिनीय व्याकरण को सर्वशास्त्रोपकारक माना जाता है- 'काणादं पाणिनीयं च सर्वशास्त्रोपकारकम् । ' वैशेषिक दर्शन का सबसे मुख्य एवं आदि प्रामाणिक ग्रन्थ वैशेषिक सूत्र है । जिसके रचयिता स्वयं महर्षि कणाद थे। प्रशस्तपाद भाष्य' अथवा पदार्थ धर्म संग्रह यह कणाद सूत्रों पर आधारित भाष्य के साथ-साथ स्वतंत्र ग्रन्थ भी है। इस ग्रन्थ पर दो टीकाओं का भी संकेत मिलता है। जो कि एक उदयनाचार्य की 'किरणावली' है तथा दूसरी 'श्रीधराचार्य' की 'न्यायकंदली' के नाम से प्रसिद्ध है । कणाद सूत्रों पर श्री शंकर मिश्र ने 'उपस्कार' नामक टीका ग्रन्थ भी लिखा है । इस पर एक वृत्ति है जिसे 'भारद्वाज वृत्ति' कहते हैं । वल्लभ की लीलावती टीका भी वैशेषिक दर्शन का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इस दर्शन की कुछ अन्य उल्लेखनीय ग्रन्थ हैंशिवादित्य रचित सप्तपदार्थी, लौंगाक्षिभास्कर द्वारा रचित तर्क कौमुदी आदि है । आचार्य ‘बल्देव उपाध्याय' ने अपनी पुस्तक 'भा० दर्शन' में (वैशेषिक के बारे में ) लिखा है कि 'वैशेषिक की उत्पत्ति कब हुई बौद्ध ग्रन्थों में (मिलिन्दप्रश्न, लंकावतार सूत्र, ललित विस्तार आदि में) वैशेषिक दर्शन का नामोल्लेख पाया जाता है। इन ग्रन्थों 86
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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