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________________ भूमिका श्री बीतरागायनमः অন্তু মুখৰ জল জল লহ্ম স্বসন্ধাঙ্গলী टीका प्रारंभः ---: + : दोहाछन्द बन्टू शी जिन कमलपद; निराधार आधार भव सागर सो भी प्रभू, कर सम भौका पार ? जिन बाणो बन्दनकाह, अति प्रिय बारम्बार जिन मुजसे निर्बुद्धि को, दिया बुद्धिफलसार २ अब मैं अन बुद्धि अवगुणधाम धममसिंह नाम विण सिंहाज सैनी अग्रवाल सुनपत नगर निवासी विद्यजनों के प्रति निवेदन करता कि मु झ को याज्ञ अवस्था सों अबतक (जो बांवम ५२ वर्ष की प्रायु भई) भाषाए न्दोबन्ध ग्रन्थों के अवलोकन का अति प्रेम रहा अब मैं मैं भी भूधर दास जे नो खंडेस वाल सागरा नगर निवासी शत जन शतक को [जो धर्म नीति मैं उत्तम वा उत्कृष्ट कविताकर अति प्रिय अन्य है] देखा और अपने परम दयालु सकलगुण आवास पण्डित मेहरचन्द्र दास सुमपत नगर निवासो की सहायता चे विचारा तब तत्काल मेरी यह अभिलाषा भई कि इस ग्रन्थली बाल बोध हेतु शब्दार्थ सरलो टीका करदीजिये सो मैंने यह विचार कर के दौएकाति भूधर जैनशतक और कतिपय संस्थत या भाषा कोश मञ्चय क • र देखे । बहुधा शष्टों का निर्णय बुद्धिमानों से कर के अपनो तुच्छ बुषि के
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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