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________________ १४ . भूधरजेनशतक प्यार प्राल, पूनो जित पास है । कायर अभावध रै, कासों दौन होह कारे, सहो सौं डरै दांत, लिये तिन रहेहै । बाउ सो न रोष पुनि, काउ म पोष चाहै, काउक परोष पर, दोष नाघरे है। नेक खाद सारवे को, ऐलो गोमारवेको, हाहां रे कठोर तेरो, कैसे कर बोहै ।। ५५ ॥ शब्दार्थ टोका ( कानन ) वन ( आनन) और न कोई (पान ) जीव ( पंजी) ना . सरमाया ( कायर ) डरपोक (द्रोह) वैर (दांत मैं तिन लेना) प्रति दौनता करनो आर्यखण्ड में रीति है कि अति दीनता समय हण दांत में लेते हैं (रोष ) रन गुस्सा ( पुनि ) फिर (पोप ) पालन (परोप) एव-कुवचन [ दोष ] अपराध (नेस) थोड़े (खाद ) मजे-जायचे (सर • रवैको) पूराधारने को [ मगी ] हिरनी (बहै ) चले । सरलार्थ टीका बन मैं बस्ती है और कोई ऐसा गरीब जीव नहीं है केवर अपने प्रां गौ से न्यार है और प्राणको बी जी जिस को पास है और कुछ पाय नहीं कर पोक सुभाव धरे है यिसी से गरीब रेप नहीं करती सवही से डर तीहै दांत मैं प लिये हुवे है बिचौर रजनहीं और किसी ने भयना पालन नहीं चाहती किसी के सोटे बचग पर दोष नहीं धरती घोड़े के बाद के वास्ते सोमगि ( मिली अवखा अपर कह पाये है भार प्ररथ हाहार कठोर तेरो से साथ रहते हैं
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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