SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 724
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७४ भिपकर्म-सिद्धि प्रोत एवं सन्ध्या समय अनुपान दूध | यह एक उनम वृष्य योग है। यह पुरुप तथा स्त्री दोनो के लिये उपयोगी है । पाण्डुरोग, प्रमेह तथा मूत्रकृच्छ में भी लाभ प्रद होता है । स्त्रियो में सन्तानोत्पादक होता है। वीर्य स्तंभकर योग १ शुद्ध किया सूरण का कंद तथा तुलसी को जड का चूर्ण बनाकर एवं मिप्रित कर १-२ मागे की मात्रा में पान के वोडे मे रखकर खाने से वीर्य च्युति गीघ्र नहीं होती है। इन दोनो ओपत्रियो का एकैकश. स्वतन्त्र उपयोग भी लाभप्रद रहता है। २. चटक पक्षो के अण्डो को मक्खन में पीसकर सम्भोग काल में पैर के तलवो में लेप करने से जब तक पैर पृथ्वी से न छुवे तब तक वीयपात नही होता। ३ नील कमल तथा सफेद कमल के केमर को चोनी और मधु में मिलाकर नाभि मे लेप करने से शीघ्र वीर्य का स्खलन सम्भोग काल में नहीं होता। ४ भूमिलता ( केचुवे ) को वरे के तेल में पीसकर पैरो पर लेप करने से भी रति काल में वोयं स्खलन शीघ्रता से नही होता है। ५ कामिनी विद्रावण रस-अकरकरा, सोठ, लवङ्ग, केशर, पिप्पली, जायफल, जावित्री, खेत चन्दन । इनमें से प्रत्येक १-१ तोला, गुद्ध हिंगुल और गुद्ध गधक ४-४ माशे, शुद्ध अफीम ४ तोले । हिंगुल और गंधक को खरल कर कज्जली बनावे । फिर शेप औषधियो को चूर्ण करके मिलावे । पीछे पान के स्वरस मे सरल कर ३-३ रत्ती की गोलियां बना ले छाया में सुखाकर गीशो मे भरकर रक्से । मात्रा १ गोली दिन में दो या तीन वार दूध के साथ सेवन करे । यह उत्तम वीर्य स्तंभक महिफेन का योग है। वीय स्तंभ वटी-जायफल, लवङ्ग, जावित्री, केशर, छोटी इलायची, अहिफेन, अकरकरा प्रत्येक १-१ तोला, कपूर ३ माशा पान की पत्ती के रस मे घोटकर चने के बराबर को गोली बना ले। शरीर के वल वर्णादि को बढाती है तथा वीर्य स्तमन करती है। वृप्य रसीपधि योग-- पुष्पधन्वा रस-रम मिन्दूर, नाग भस्म, लौह भस्म, अभ्र भस्म, वग भस्म । प्रत्येक १-१ तोला । उन्हें एकत्र पोसकर चतुर की पत्ती के स्वरम, भाग के क्वाथ, मुलेठी के क्वाथ, सेमल की जड के क्वाय और पान के पत्र स्वरस से पूधम्-पृथक एक-एक भावना देकर २-२ रत्ती की गोलियां बना ले। घी ६ मागा चोर म ८ मामा के माथ गोटी को पाकर ऊपर से मिश्री मिश्रित दूध पिये। पात -नायम् । उत्तम वाजीकरण है । बल एवं मायु का बर्षक है ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy