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________________ ६५६ भिवकम-सिद्धि तन्त्र के पश्चात् दूसरा महत्त्व का तन्त्र यह वाजीकरण तन्त्र है । रसायन तन्त्र का मुख्य लक्ष्य आरोग्य एव दीर्घ जीवन की प्राप्ति है । इस दीर्घ जीवन की प्राप्ति के अनन्तर प्राण का परिपालन, बनार्जन (धन का फमाना ), धर्मार्जन (धर्म का संग्रह करना), पुरुष का कर्तव्य हो जाता है । इन कर्तव्यो का तीन एपणावो या इच्छावो के नाम से या पुरुषार्थों के नाम से प्राचीन ग्रयो मे वर्णन पाया जाता है साथ ही इनके प्राप्त करने की महत्ता भी बतलाई गई है । इतना ही नही पुरुप को पुरुप तभी कहा जाता है जब वह तीनो एपणावो की प्राप्ति में सदैव तत्पर रहता है। इसीलिये इन्हें पुस्पार्थ भी कहते हैंपक्षपार्थ चार होते है-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । एपणायें बहुविध होती हुई भी तीन बढे वर्गों में ममाविष्ट है-प्राणपणा, धनपणा तथा परलोकपणा । पुरुप का पौरुप (गारीरिक वल) तथा पराक्रम (मानसिक वल ) का सर्वोत्कृष्ट फल इसी में निहित है कि वह सदैव विविध एपणावो या पुरुषार्थी की प्राप्ति में तत्पर रहे। पुरुषार्थयुक्त पुरुप को पुरुप कहा जाता है, दूसरे को नही । पुरुषार्थ के अभाव में वह पशुतुल्य ही रहता है। आचार्य चरक्ने भी लिखा है कि मनुष्य को अपने गरीर, मन, बुद्धि, पौरुफ तथा पराक्रम से इमलोक तथा पर लोक मे हित का विचार करते हुए तीनो प्रकार की एपणावो की प्राप्ति में मतत प्रयत्नशील रहना चाहिो। उदाहरण के लिए प्राणपणा, धनपणा तथा परलोकपणा के प्रति । "इह खलु पुरुषेणानुपहतसत्त्वबुद्विपौरुपपराक्रमेण हितमिह चामुम्मिश्च लोके समनुपश्यता तिन एपणाः प्रयष्टव्या भवन्ति । तद्यथा प्राणेपणा, धनेपणा, परलोकपणेति ।" (चर० सू० ११) ____मनुष्य को इच्छावो में से सर्वप्रथम इच्छा प्राण (जीने ) की होती है क्योकि प्राण के त्याग से नव कुछ चला जाता है। इसके पालन के लिये स्वस्थ को स्वस्थवृत्त के सूत्रो का नाचरण, रोग हो जाने पर रोग के सद्यः प्रगमन के उपाय करते हुए दीर्घायुष्य को प्राप्त करना प्रथम इच्छा होनी चाहिये । प्राण के अनुपालन के अनन्तर दूसरी इच्छा धन के साधन की होनी चाहिये । कपि, व्यवसाय या नौकरी करके धन का संग्रह करना चाहिये । प्राणपणा एव धनपणा मे कामनामक पुरुषार्थ-चतुष्टय का अन्तर्भाव हो जाता है क्योकि शरीर सम्पत्ति और धन-सम्पत्ति में काम का ही पोपण होता है। यह कामपणा स्वतः उत्पन्न होती है । फलत इसके सम्बन्ध में अधिक उपदेग की अपेक्षा नहीं रहती यह प्रकृति से स्वयमेव उत्पन्न होती है । परलोकपणा से धर्म और मोक्ष प्रभृति अन्तिम पुरयार्थो का ग्रहण हो जाता है ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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