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________________ चतुर्थ खण्ड : बयालीसवाँ अध्याय ८. येन नारोषु सामर्थ्यं वाजिवल्लभते नरः । व्रजेच्चाभ्यधिक येन वाजीकरणमेव तत् ॥ ( चरक - चि०२ ) वाजीकरणमन्विच्छेत पुरुषो नित्यमात्मवान् । ९ यद् द्रव्यं पुरुषं कुर्याद् वाजिवत् सुरतक्षमम् । तद् वाजीकरण ख्यातं मुनिभिर्भिषजा वरैः ॥ ( यो०र० ) " अर्थात् विविध प्रकार की चिन्ता, वृद्धावस्था, व्यायामादिक कर्म, पंचकर्म, अनशन तथा अतिस्त्रीसेवन से शुक्र का क्षय होता है । जिस औषध, आहार एवं विहार के द्वारा वीर्यहीन मनुष्य स्त्रियो के साथ सम्भोग करने मे अश्व के समान शक्ति प्राप्त करले उमे वाजीकरण कहते है । अथवा जिस क्रिया के द्वारा वीर्य को अति वृद्धि होती हो उसे वाजीकरण कहते हैं । वाजपद से मैथुन का अर्थ ग्रहण करने से वाजी शब्द का अर्थ मैथुन-शक्ति वाला हुआ, अत जिस औषध से मैथुन-शक्ति रहित पुरुष मैथुन - शक्ति सम्पन्न बनाया जाता है, वह वाजीकरण कहलाता है । ६५५ अत वाजीकरण शब्द से पुस्त्व का ही वोध किया जाता है । इससे यह सिद्ध हुआ कि पुस्त्व को बढानेवाली औषधि को वाजीकरण कहते है । जिन औषधियो का उचित मात्रा मे उपयोग करने से घोडे के समान अत्यधिक वेगवान होकर स्त्री को तृप्त करने का सामर्थ्य मनुष्य मे प्राप्त होता है, उसे वाजीकरण कहा जाता है । इसके उपयोग से पुरुष स्त्रियो के लिये अति प्रिय हो जाता है और स्त्री तथा पुरुष दोनो का शरीर अधिक शक्तिशाली हो जाता है । फलत विषयी पुरुष को नित्य वाजीकरण का सेवन करना चाहिये अर्थात् वाजीकरण प्रक्रिया का नित्य उपयोग करना चाहिये । .1 वाजीकरण शब्द की परिभाषा बनाते हुए आचार्य सुश्रुत ने लिखा है अल्पवीर्य वाले व्यक्ति वीर्यवाले व्यक्ति का बाजीकरण तत्र उस तत्र को कहते है - जिसमे स्वभाव से का आप्यायन ( पूरण ), दुष्ट वातादि दोपो से दूषित प्रसादन, अत्यधिक क्षय को प्राप्त हुए क्षीण वीर्य करना, वृद्धावस्था या प्रौढावस्था मे शुष्क वीर्य वाले स्वस्थ व्यक्ति में शुक्र की वृद्धि एवं स्राव बतलाये जावें । वाजीकरणतन्त्र नामाल्पदुष्टक्षीणविशुष्करेतसाम् आप्यायनप्रसादोपचयजनननिमित्त प्रहर्पजननार्थ: । ( सु० सू० १ ) वाजीकरण का माहात्म्य - आयुर्वेद के आठ प्रधान अग या विभाग वतलाये गये है उसमे एक अन्यतम अग वाजीकरण माना जाता है । रसायन व्यक्ति का उपचय या वृद्धि व्यक्ति का शुक्रोत्पादन तथा करने के निमित्त उपचार
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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