SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 682
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६३२ भिषकर्म-सिद्धि बायमाणा, जवासा, कुटकी १-१ तोला और शुद्ध गुग्गुल का चूर्ण ८ तोला लेकर पानी मे पीस कर कल्क बनावे । इस कल्क से चतुर्गुण ( २१ सेर ) गोघृत लेकर वृतपाक विधि से पाक करे। यह योग कुष्ठ की परमोपधि हैं । मात्रा ६ माशे से १ तोला । पंचतिक्त घृत गुग्गुलु-नीम की छाल, गिलोय, अडूसा पचाङ्ग, पटोल पत्र और कंटकारी की जड प्रत्येक ८ तोला लेकर ३२ सेर जल मे क्वथित करे ४ सेर शेष रहने पर उतारे । फिर उसमें शुद्ध गुग्गुलु २४ तोले और गोवृत १ सेर लेकर मंद आच पर पकावे। जब पाक समीप आवे तो निम्नलिखित द्रव्यो का कल्क छोड़े और पाक करता चले । कल्क द्रव्य--पाठा वायविडङ्ग देवदारु, गजपीपल, सज्जीखार, यवक्षार, सोठ, हल्दी, सौफ, कूट, तेजवल, काली मिर्च, इन्द्रजी, जीरा, चित्रक की छाल, कुटकी, शुद्ध भल्लातक, वचा, पीपरामूल, मंजिष्टा, अतोस, हरड, बहेरा, आवला और अजवायन प्रत्येक १-१ तोला पाक के सिद्ध हो जाने पर कपडे से छान कर रख ले। मात्रा ६ मारो से १ तोला । ___ यह योग परम रक्तगोधक है। बहुविध रोगो में व्यवहृत होता है। उत्तम रक्त-शोधक है। कुष्ट रोगो मे लाभप्रद है। गुग्गुलु के और कई योग जैसे एकविंशतिक गुग्गुलु तथा अमृताद्य गुग्गुलु भी कुष्ठ रोग मे उपयोगी है । अमृतभल्लातक-इस योग का पाठ वातरोगाधिकार में हो चुका है। यह एक उत्तम रसायन है। वात रोगो तथा कुष्ठ रोगो म इस प्रयोग से उत्तम लाभ होता है। कुष्ट रोग की चिकित्सा मे अमृत भल्लातक की प्रगसा करते हुए थकार ने लिखा है कि जिम मनुष्य के कान, संगुलियाँ, नासिका ये कुष्ठ के कारण गलकर गिर गये हो, मारा गरीर कुष्ठ कृमियो से व्याप्त हो रहा हो, गला विकृत हो गया हो, वह मनुष्य भी इस औपध-सेवन के प्रभाव से क्रमशः धीरे-धीरे जलवृष्टि से जैसे अंकुर और शाखायें निकलकर धीरे-धीरे पूरा वृक्ष बन जाता है, उसी तरह नष्ट हुए मग-प्रत्यग पुन विकसित होकर पूर्ण गरीर युक्त हो जाते है । धातवीय योग : तालकेश्वर रसद पत्र हरताल ४ तोले लेकर खरल में पीसकर चक्रमर्द बन्न चोर नरपुसा के क्वाथ के साथ तीन-तीन घण्टे तक घोटकर चनिकायें बनाये, उन्हें मुनाकर एक दिन में रखकर ऊपर-नीचे पलाग की रास १. विगीर्णकर्णागलिनामिकोऽपि हिदितो भिन्नगलोऽपि कुष्ठी। सोऽपि क्रमादहरितानशाखस्तय॑या भाति नमोऽम्बुसिक्तः ॥ (भ. र.)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy