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________________ सैंतीसवाँ अध्याय शोथरोग प्रतिपेध रोग परिचय - श्वयथु, शोथ एक शोफ ये तीनों दब्द सूजन के बोधक । शोय रोग कहने का तात्पर्यं कई प्रकार के वर्गीकरण सूजन के दो प्रकार किये होते है एवं प्राय पर्याय रूप में व्यवहृन होते है होता है देह के सूजन को बीमारी । शोध रोग में प्राचीन ग्रन्थो मे पाये जाते है । जैसे - कारणभेद से जा सकते है -निज तथा आगन्तुक । निज वे शोथ है जो विविध प्रकार के मिथ्या आहार-विहार के कारण दोपो के शरीर मे कुपित होने से होते है । दूसरा वर्ग आगन्तुक कारणो का होता है जिसमे आघात, अग्नि या अग्नितप्त पदार्थो मे जलना, रासायनिक पदार्थ या तीव्र अम्ल या चारो से जलाना, विविध विकारी अणुजीव, विप-सम्पर्क तथा विद्युत् आदि से त्वचा मास आदि में शोध हो जाता है । इन दो भेदो मे नव प्रकार के शोथो का समावेश हो जाता है--यथावातज - वित्तज कफज वातपित्तज, पित्तकफज, वातकफज, सन्निपातज ( निज प्रकार में ) तथा अभिघातज एव विपज ( आगन्तुक प्रकार मे ) । आधुनिक ग्रन्थों में भी शोथ के दो प्रकार पाये जाते है । निष्क्रियशोथ ( Passive Oedews ) तथा सक्रिय शोथ ( Active oedema or Inflammatary oedema ) सक्रिय शोथ को प्राचीन परिभाषा में व्रण शोध कहते है । दूसरे शब्दो में निष्क्रिय शोथ वा 'ईडिमा' को प्राचीनोक्त निजवर्ग में तथा व्रण-शोथ ( Inflammatary oedema ) को आगन्तुकवर्ग मे रखा जा सकता है । चरक के अनुसार शोफ के तीन भेद किये जा सकते है - १ सर्वाङ्गशोफ ( Generalised oedma ) - जब शोफ सम्पूर्ण शरीर में हो । २ अर्थाङ्गशोफ-आवे अङ्ग में शोफ का होना - ऐमा शोफ हृदय एव यकृत् की विकृति मे अधराङ्गगोफ अथवा वृक्क के विकारों में ऊर्ध्वाशोफ अधिकतर होता है । ३ एकाशोफ या एकदशोत्थित शोफ (Localised oedema ) । आगन्तुक कारणो से प्राय. एकदेशोत्थित शोफ होता है । इस प्रकार का शोक व्रणशो मे तथा श्लीपद में पाया जाता है ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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