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________________ चतुर्थ खण्ड : छत्तीसवाँ अध्याय ६०१ है- शोध अनुसंधान का विषय है । सब से बडी कठिनाई इस मे मात्रा निर्धारण ओर उपयोग की विधि की उपस्थित होती है । - चरकाचार्य ने लिखा है कि इस दारुण कर्म करने के पूर्व रोगी के ज्ञाति, कुटुम्बी, मित्र, स्त्री, ब्राह्मण, गुरु तथा राजा को सूचित किया जावे और उन की अनुज्ञा या अनुमति ले लो जावे, चिकित्सक भी स्वयं अपना सदेहात्मक अभिमत प्रकट कर दे "कि उपचार नही किया जायगा तो रोगी को मृत्यु ध्रुव है, इस उपचार में भी सशय है कि रोगी रोग से बच जावेगा ओर स्वम्थ हो ही जावेगा ।" पश्चात् विप का प्रयोग रोगो के भोजन या पेय के साथ सयुक्त करके करे अथवा सर्प से किसी फल को कटवा के - - जिसे सर्प ने अपने विप से युक्त कर दिया होखिलाया जावे | उत्तम चिकित्सक को चाहिये कि विचार करके उसकी मात्रा का निर्धारण कर के प्रयोग करे । इस क्रिया से रोगी का विमार्गस्थित दोपसंघात जो शरीर में स्थिर एव लीन हो गया है उसका विघात होकर शीघ्रता से निकल जाता है क्योकि विप तीव्र आशुकारा एव प्रमाथी होता है। दोपो के निर्हरण हो जाने के अनन्तर रोगो का शीतल जल से परिषेक करके उसको वल के अनुसार पर्याप्त मात्रा मे गाय का दूध अथवा यवागू का प्रयोग भोजन के रूप में करना चाहिये | पश्चात् त्रिवृत् पत्र, मण्डूकपर्णी का पत्र, वथुवा का शाक, या काल शाक को स्विन्न कर के बिना खटाई, मसाला, नमक और स्नेह ( तेल या घी ) के या यवयूप खाने के लिये देना चाहिये । एक मास तक रोगी को निरन्न ही रखना, पर्याप्त मात्रा मे दूध एव उपर्युक्त शाको को स्विन्न करके या बिना स्विन्न किये देना चाहिये। रोगी को जल भी नही देना चाहिये । प्यास लगने पर उपर्युक्त शाको का स्वरस ही पीने के लिये देना चाहिये । इस प्रकार एक मास के अनन्तर दोपो के सम्पूर्णतया निकल जाने पर दुर्बल रोगियो मे वल के वर्धन के लिये ऊटनी का दूध ( कारभ पय ) पिलाना चाहिये । पश्चात् यवयूप आदि देते हुए क्रमश ससर्जन क्रम से रोगी को धीरे धीरे प्राकृत आहार पर ले आना चाहिये । १ १. विपेण हृतदोष त शीताम्बुपरिपेचितम् । पाययेत भिपग दुग्ध यवागू वा यथावलम् || त्रिवृन्मण्डूकपर्योश्च शाक सयववास्तुकम् । भक्षयेत् कालशाक वा स्वरसोदकसाधितम् ॥ निरम्ललवणस्नेह स्विन्नास्विन्नमनन्नभुक् । मासमेकं ततश्चैव तृपित स्वरस पिवेत् ॥ एव विनिर्हृते दोषे शाकैर्मासात् पर तत । दुर्वलाय प्रयुञ्जीत प्राणभृत् कारभ पय ॥ ( चचि १३ )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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