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________________ ५६० भिपकम-सिद्धि प्रयोग अधिक अनुकूल पडता है। यह क्रम ३-३ पिप्पली के वर्द्धमान प्रयोग मे पूर्ण हो जाता है । कुछ वैद्य १-१ के क्रम से बढ़ाते हुए उपयोग करते हुए लाभ उठाते हैं। विना स्नुही से भावित पिप्पली के उपयोग से भी पर्याप्त लाभ होता है। इस वर्धमान पिप्पली प्रयोग से बढकर उदर रोग में कोई चिकित्सा जगत् में नहीं है। वर्धमान पिप्पली प्रयोग-इस प्रयोग मे पिप्पली (छोटी पीपल ) दो प्रकार की हो सकती है.-केवल पिप्पली या भावित पिप्पली या सस्कारित पिप्पली। संस्कारित पिपलियो में १ किंशुक ( पलाश ) के क्षार जल में भिगोयी पिप्पली या पिप्पली को सात दिन तक मट्ठे में भिगोकर पश्चात् निकाल कर प्रयुक्त बयवा स्नुहोक्षोर मे भावना देकर बनायो पिप्पली। इनमें केवल पिप्पली या पलाग क्षार जल मे भिगोयी, मट्ठे में भिगोयी-पिप्पली का प्रयोग जब केवल यकृत् एवं प्लीहा की वृद्धि (Enlargement of spleen or Cirhosis of liver ) मात्र हो, उपद्रव रूप में जलोदर साथ में न हो (अजातोदक) तब करना उत्तम रहता है, परन्तु जब इनके उपद्रव रूप में जलोदर ( जातादक ) हो जावे तो स्नुही क्षीर से भावित पिप्पली अधिक उत्तम रहती है। रोगी के वल, काल, महन-शक्ति का विचार करते हुए वर्धमान पिप्पली का प्रयोग करना चाहिये । सब से उत्तम क्रम १० पिप्पली से प्रारंभ करके प्रयम दिन दस, टूमरे दिन वीस, तीसरे दिन तीस करके देना है, इस प्रकार दसवें दिन मी पिप्पली का उपयोग प्रतिदिन प्रयोग करने से हो जाता है। इस वर्धमान पिप्पली के उपयोग काल में रोगी को कंवल दूध ( गरम करके ठडा किये दूध) पर रखना चाहिए। और दूध मे पीसकर हा पिप्पली का सेवन करने को देना चाहिये । दिन में दो या तीन हिस्से में विभाजित कर प्रतिदिन की पिप्पली की संख्या को देना चाहिये। जैसे जैसे पिप्पली वढती चले दूध की भी मात्रा एक नियमित क्रम से वढानी चाहिये । जैसे रोगी के प्रारभिक दूध की मात्रा १ मेर रही हो तो प्रत्यह १ पाव या आधा सेर वढाते जाना चाहिये। दसवें दिन १ स्नहीपयोमाविताना पिप्पलोना पयोगन । महन्न चेह भुजीत शक्तितो जठरामयो । पिप्पलीवर्धमान वा कल्पदृष्एं प्रयोजयेत् । जठराणा विनाशाय नास्ति तेन समं भुवि ॥ (भै. र.) त्रिभिरथ परिवृद्ध पञ्चमि सप्तभिर्वा दगभिरथ विवृद्ध पिप्पलीवर्धमानम् । इति पिवति युवा यस्तस्य न वामकामज्वरजठरगुदार्गावातरक्तक्षया. स्युः।। (यो र.)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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