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________________ चतुर्थ खण्ड : छत्तीसवाँ अध्याय ५८६ नारायणचूर्ण - अजवायन, हाउबेर, धनिया, त्रिफला, काला जीरा, सौक, पिप्पली मूल, अजमोद, कचूर, बच, सोया बीज, श्वेत जीरा, सोठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, स्वर्णक्षीरी मूल, चित्रक, यवक्षार, सज्जीखार, पुष्करमूल, कूठ, सैधव, सामुद्र लवण, मोचल लवण, विड लवण, उद्भिद् लवण और वायविडङ्ग प्रत्येक १ तोला । दन्ती की जड ३ तोले, निशोथ तथा इन्द्रायण की जड २-२ तोले, सातला की जड ४ तोले । सवका महीन कपडछन चूर्ण | यह नारायण चूर्ण अनेक रोगो मे अनुपान भेद मे लाभप्रद होता है । मात्रा २-४ माशे । उदर रोगो में मट्ठे के साथ, गुल्म रोग मे बेर के क्वाथ के साथ, अर्श एवं विबन्ध रोग में दही के पानी या अनार के रस के साथ और अजीर्ण मे गर्म जल के साथ पाण्डु, हृद्रोग, कास- श्वास तथा ग्रहणी एव विष देने से उत्तम लाभ होता है । चिकित्सा मे भी उपयोगी है । देवदार्वादि लेप --- देवदारु, पलाश के वीज या मूल, आक के पत्र या जड, गजपिप्पली, सहिजन की छाल, असगंध और काकमाची इन्हे सम प्रमाण मे लेकर गोमूत्र मे पीसकर उदर पर गर्म गर्म लेप करने से आध्मान कम होता है । यकृत् एव प्लीहा की वृद्धि भी कम होती है । ' सहस्रपिप्पली प्रयोग — थूहर के दूध मे सात बार या इक्कोस वार भिगोयी एक सहस्र को संख्या मे उदर रोग नष्ट होता है । रहता है । १० पिप्पली से और सुखाई पिप्पली का सेवन करने से और केवल क्षीराहार पर रोगी के रहने से इसमे वर्धमान पिप्पली के क्रम से प्रयोग करना उत्तम प्रारंभ करे प्रथम दिन दूध में पीसकर तीन हिस्से मे बांटकर प्रात, मध्याह्न एव साय काल मे दूध के साथ १० छोटी पीपल का प्रयोग दूसरे दिन २० और तीसरे दिन ३० तथा इस प्रकार बढाते हुए दसवें दिन १०० पिप्पली का सेवन करावे फिर दस के क्रम से घटाते हुए १० पिप्पली प्रतिदिन पर लेकर क्रम को वद कर दे । इस प्रकार पूरे कल्प मे १००० पिप्पली लगती है - रोगी को क्षीराहार पर रखकर इस प्रयोग से यकृद्दाल्युदर ( Cirhosis of the liver ) एव तज्जन्य उपद्रवो मे जलोदर आदि में उत्तम लाभ होता है । रोगी और रोग के बल के अनुसार तोन, पाँच या सात के क्रम से भी वृद्धि की जा सकती है । और पिप्पली कुल संख्या कम की जा सकती है - यह सहस्र पिप्पली प्रयोग बडा उग्र है और बलवान रोगियो मे ही करना सभव है । इसकी एक तृतीयाश अर्थात् ३३० पिप्पली का कुल १ देवदारुपलाशार्क हस्ति पिप्पलिशिग्रुकै । साश्वगधे सगोमूत्र प्रदिह्यादुदर शनै ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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