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________________ प्रथम अध्याय निदानपनक की उपादेयता या प्रयोजनसूचक. अन्य भी चर्चा शास्त्र मे पाई जाती है जैमा कि निम्नलिखित कोष्ठक से स्पष्ट है निदान-पचक हेत पूर्वरूप रूप उपशय सम्प्राप्ति (१ रोग विनिश्चय , , , १ अशाश २ माध्यामाध्य विवेक ,, , , कल्पना प्रयोजन1 ३ मापेक्ष्यनिश्चिति , २ व्याधिवल [४ चिकित्सा , ३ काव्यता निदान-कथन-प्रयोजन- 'निदान त्वादिकारणम्' (चरक)। 'सक्षेपतः क्रियायोगो निदानपरिवर्जनम्' (सुश्रुत ) । 'हतोरसेवा विविधा' ( चरक )। इन मंत्रों के अनुसार हेतु या निदान का परित्याग ही रोग की सामान्य चिकित्सा है। अस्तु, यदि रोगो मे निदान या कारण का कथन किया जावे तो इस ज्ञान के अभाव में चिकित्सा करना ही सभव नहीं रहेगा । अत , प्रत्येक रोग मे उत्पादक कारणो की विवेचना करना आवश्यक है। पर्वरूपाभिधान-प्रयोजन-केवल निदान मात्र के कथन से रोग विनिश्चय मभव नहीं रहता क्योकि कई वार एक ही या समान हेतु के अनेक रोग हो सकते हैं, और कई वार एक हेतु से एक ही रोग उत्पन्न होता है। इस प्रकार एक व्याधि के अनेक हेतु और बहुत सी व्याधियो मे वहुत से हेतु भी हो सकते है ‘एको हेतुरनेकस्य तथैकस्यैक एव हि । व्याधेरेकस्य बहवो वहूना वहवस्तथा ।।' (चरक) उदाहरणार्य समान हतु से ज्वर एव गुल्म की उत्पत्ति हो सकती है । जैसे मिथ्याहारविहाराभ्या दोपा ह्यामाशयाश्रयाः। वहिनिरस्य कोष्ठाग्नि ज्वरदा स्यू रसानुगा.॥ . दुष्टा वातादयोऽत्यर्थ मिथ्याहारविहारतः। कुर्वन्ति पञ्चधा गुल्म कोष्ठान्तर्ग्रन्थिरूपिणम् ।। १ एक हेतु से एक रोग की उत्पत्ति जसे-'मृद्भक्षणात् पाण्डुरोग ' 'मक्षिकाभक्षणाच्छदि ' । फलत केवल निदान या हेतु के कथन मात्र से रोग का विनिश्चय सभव नही रहता है । इसलिए पूर्वरूप आदि का भी कथन करना अपेक्षित है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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