SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 565
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ खण्ड : उन्तीसवाँ अध्याय ५१५ पैत्तिक शूल में विशिष्ट क्रियाक्रम -- पुराना गुड, शालि चावल, जी, दूध, घृतपान, विरेचन, जाङ्गल पशु-पक्षियो के मास ये द्रव्य पित्तशूल से पीडित रोगियो में लाभप्रद होते है । पैत्तिक शूल में परवल की पत्ती और नीम की पत्ती को दूध, पानी या ईख के रस में पीसकर पिलाकर वमन कराना, शीतल जल मे अवगाहन, शीतल वायु युक्त स्थानो पर नदी के किनारे आवास, शीतल जल से भरे कास्यपात्र ( कटोरे प्याले ) को शूलयुक्त स्थान पर रखना उत्तम रहता है । " यवयूप, मण्ड या पेय १ - वमन रोग, ज्वर, ज्वरातिसार, पैत्तिकशूल, तीव्र संताप एव बार बार प्यास लगना ( तृष्णा रोग ) मे जो का मण्ड बनाकर ठंडा होने पर उसमे मधु मिलाकर ( Barly water) पीने को देना चाहिये । इससे इन सभी रोगो मे शान्ति मिलती है । धान के खील का मण्ड और मधु भी उत्तम पथ्य है । मांसरसो मे खरगोश ( शश ) तथा लावा ( वटेर ) का मास रस बनाकर दिया जा सकता है । भेपज- २१ आमलकी स्वरस १ तोला या आमलकी चूर्ण ६ मारो से १ तोला मधु के साथ । २ विदारीकद स्वरस १ तोला । ३ त्रायमाणा का स्वरस या कषाय । ४ द्राक्षा का स्वरस या कल्क या कपाय । ५. त्रिवृत् (निशोथ काली ) का चूर्ण मधु के साथ । ६ शतावरी का स्वरस मधु से ७ मधुयष्टि का कपाय एरण्ड तैल मिलाकर । ८ आरग्वध फल को मज्जा । या ९ त्रिफला का कपाय और मधु का प्रयोग पैत्तिक दाह तथा शूल मे परम लाभप्रद होता है | त्रिफलादि कपाय --- त्रिफला, निम्बपत्र, मधुयष्टि, कुटकी, अमलताश का गूदा, शतावरी, बला और गोक्षुर का कषाय यथाविधि बनाकर ठंडा होने पर मधु मिलाकर सेवन करने से पित्त की अधिकता शान्त होती है । रेचन हो जाने से तज्जन्य दाह एव शूल दोनो का शमन होता है। श्लेष्म शूल में विशिष्ट क्रियाक्रम - कफन शूल मे वमन, लंघन, ज्योतिष्मती ( मालकगुनी ) आदि द्रव्यो द्वारा शिरोविरेचन, मधु से वने सीधु या १. गुड शालियवा क्षीर सविष्यानं विरेचनम् । जाङ्गलानि च मासानि भेपजं पित्तशूलिनाम् ॥ पित्ते तु शूले वमनं पयोऽम्बुरसस्तथेोः सपटोलनिम्बै । शीतावगाहाः पुलिना सवाता कास्यादिपात्राणि जलप्लुतानि ॥ ( भै . ) २ प्रलिह्यात् पित्तशूलघ्नं धात्रीचूर्णं समाक्षिकम् ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy