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________________ भिषक्षर्म-सिद्धि । विनीला, कुल्थी, तिल, जौ, एरण्डमूल, अतीस, पुनर्नवा, सन के वीज इन्हे जाजी मे पीसकर पृथक-पृथक् या मिलाकर गर्म करके उदर का सेंक करना ।। लेप सेक-मदनफल को काजी के साथ पीसकर गर्म करके उदर पर लेप करना । राई, सहिजन की छाल इनको सममात्रा में गाय के म्ढे के साथ पीसकर उदर पर गर्म गर्म लेप करने से सद्य. गूल का शमन होता है । हींग, सरसो का तेल, मेंधा नमक और गोमूत्र को गर्म करके उससे तौलिया भिगो कर निचोड कर उदर का सेंकना तथा नाभिछिद्र मे भरना शूलशामक होता है । ___ दही के मढे के साथ जौ का आटा गूंद कर उसमें जवाखार मिलाकर (जी का आटा si, ग्वाक्षार 5- मिलाकर ) गर्म करके उदर पर मोटा लेप करना उदर शूल का शामक होता है।' १. कुलत्थ यूष या लावकं यूप-कुलथी' ४ तोले अथवा वटेर का मांस ४ तोले ६४ तोले जल मे खौलाकर १६ तोले शेप रहने पर उतारे। उसमे हीग, सोठ, मरिच, पीपल ( छोटी ), सेंधा नमक, काला नमक प्रत्येक २ रत्ती मिलाकर घीसे छोक कर पिलाने से वातिक शूल का शमन होता है । । २ बलादि क्वाथ-वला, पुनर्नवा, एरण्ड, छोटी कटेरी तथा गोखरू मूल का समभाग में बनाये कपाय मे घी मे भुनी हीग और काला नमक का प्रक्षेप करके पीना। ____३ दशसूल कपाय मे एरण्ड तैल, होग और काला नमक का प्रक्षेप डाल कर पीना। ४ करज के फल की मीगी (कंटक करंज), काला नमक, शुठी, घृत में मजित होग । २ इनका समभाग मे बना चूर्ण ३ माशे की मात्रा मे गर्म जल से सेवन । इस चूर्ण को करंजादि चर्ण कहते हैं। एक योग कुवेराक्षादि वटी नामक बाज कल प्राय चलता है। उसका योग इस प्रकार का है :-- ५. कुवेराक्षादि वटी-बालू मे भुना करंज बीज, मटे मे भिगो कर घी म तला लहसुन और सोठ प्रत्येक एक एक तोला, घी में तली होग और सुहागे की खोल ६, ६ मागे। सहिजन के रस में घोट कर ४-४ रत्ती गोली। अनुपान गर्म जल । सभी शूल में लाभप्रद । १. तण पिष्टं यवचूर्णमुष्णं सक्षारमत्ति जठरे निहन्यात् ॥ च. सू. ३ २ करजसौवर्चलनागराणां सरामठाना समभागिकानाम् । चूर्ण का प्णेन जलेन पीत समीरशूलं विनिहन्ति सद्यः ।।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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