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________________ चतुर्थ खण्ड : पचीसवॉ,अध्याय ४८९ उपचार-इन रोगो में अस्ति राहश उपचार करना चाहिये । पीने के लिये अमांशावशिष्ट जल ( जल को एक मिट्टो के नये वर्तन में सौलाकर जव उसका आदर्श भाग गोप रहे ) देना चाहिये । दशमूल फा कपाय पिप्पली चूर्ण अथवा अश्वत्य की छाल का कपाय अधिक मात्रा में पिलाना चाहिये । वात रोगो मे पठित वातघ्न तैलो का सम्यग या तल को द्रोणी मे भरकर अवगाहन कराना नाहिय । स का दूध मिश्री मिलाकर पर्याप्त मात्रा में रोगी को देना चाहिये। रोगी को स्नेहन, नारायण तैलादि को पिलाकर, मालिश करके करना चाहिये । स्पेदन की प्रचुर व्यवस्था करनी चाहिये। इसके लिये भैस के गोबर के बने गोहरे की अग्नि बना कर उससे धूपन एव स्वेदन करना चाहिये। यदि व्रण रोगी को गरीर पर उपस्थित हो तो व्रण का शोधन-रोपण प्रभृति उपचार करना चाहिये । स्वेदन के लिये अन्य प्रकार के वातनाशक स्वेदनो का जैसे शाल्वण स्वेद का भी उपयोग किया जा सकता है। धनुर्वात के रोगी मे प्रथम लक्षण हनुस्तभ पैदा हो जाता है, जिसके कारण मनसे मोपधि का सेवन भी कठिन होता है। प्रयत्नपूर्वक वृहत् वातचिन्तामणि रस अथवा वातकुलान्तक या कस्तूरी भैरव रस का प्रयोग अदरक, तुलसी के रस, घी और मरिच के अनुपान से करना चाहिये। सभी उद्भव के आक्षेपो मे पस्तुरी के यौगिको का विशेषकर के वातकुलान्तक रस का उपयोग उत्तम लाभ दिसलाता है। यदि एक, एक गोली की मात्रा से लाभ न दिखाई पडे, तो दो, दो या चार, चार गोली एक साथ दे। वस्ति प्रयोग-दशमूल, वला, रास्ना, अश्वगंध प्रभृति वातनाशक द्रव्यो के नवाथ, वातघ्न तैल, सेंधानमक और मधुमिश्रित योग का गुदा से वस्ति देना लाभप्रद रहता है । अन्य वातनाशक योगो का प्रयोग किया जा सकता है। आवृतं वात प्रतिपेध-वायु अपने कारणो से स्वतत्र या विकृत होकर रोग उत्पन्न करता है और कभी कभी वृद्ध कफ और पित्त आदि से आवृत होकर भी विकारो को उत्पन्न करता है। आचार्य चरक ने कहा है कि "वायु का धातुक्षय के कारण कुपित होना तथा मार्ग के आवरण से कुपित होना पाया जाता है।" इस आवरण के बहुत से भेद हो सकते है। सब मिलाकर १. बाह्यायामेऽन्तरायामे विधेयादितवत् क्रिया । (भा. प्र ) । बाह्मायामान्तरायामपार्श्वशूलकटिग्रहान् ॥ खल्लीदण्डापतानी च स्नेहस्वेदपुटैजयेत् । अपतानव्रणायामी स्नेहणचिकित्सित. ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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