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________________ भिपर्म-सिद्धि भस्म समभाग में ले, पहले मल्ल सिन्दूर का खरल में वारीक पीरा ले, पीछे उसमें अन्य द्रव मिलाकर, अर्जुन बृक्ष की छाल की ७ भावनायें देकर १ रत्ती की गोली बना ले। मात्रा १-२ गोली दिन में दो बार दूध या दगमूल कपाय के साथ । मदित, खंजवात, पङ्गत्व तथा पुराने पक्षाघात में इससे अच्छा लाभ होता है। (मि. यो. स ) मकर मुष्टि योग--मकरध्वज, स्वर्ण सिन्दूर या रस सिन्दूर मे से किसी एक फा १ रत्ती, कान्त लौह भस्म १ रत्ती तथा शुद्ध कुपीलु १ रत्ती मिलाकर एक या दो मात्रा कर के । मलाई, मक्खन या घृत और चीनी से देने भी अच्छा लाभ पहुंचता है। आक्षेपक - अपतानक-अन्तरायाम-बहिरायाम-दण्डापतानक-हनग्रह-हतस्तंभ-वातरोगाध्याय में पठित ये रोग बडे भयंकर एवं घातक होते है । माधुनिक ग्रंथो मे पठित धनुर्वात ( Tetanus ) की विविध अवस्थामो में पाये जाते है । धनुर्वात का रोग यदि गर्भपात के अनन्तर हुमा हो या अति मात्रा में रोगो मे रक्तमय हो गया हो अथवा अभिघातज (Traumatic origin) का हो नो असाध्य हो जाता है। गेप साध्य होते है। ऐसा प्राचीन ग्रथकारो का अभिमत है। धनुर्वात के रोगी की मुखाकृति वदल जाय अर्थात् वह विवर्ण या बिकटास्य युक्त हो जावे, अग मिथिल हो जावे और स्वेद अधिक मात्रा में निकलने लगे तो वह एक दारुण रोग है । देवकृपा से अच्छा होता है । यदि रोगी की बायु शेप रहे योर निम्नलिखित बरिष्ट लक्षण उपस्थित न हो तो उपचार करे---१. नेत्रों से जलवाव, २ कम्प ३. चारपाई पढ़ लेना ४, तारो (Pupil) का विस्तृत होना । जब तक कि अपतानक के रोगी में ये लक्षण न पैदा हो गये हो उपचार करे। ____ मरिष्ट लक्षण बोर उपद्रवो से युक्त रोगी, प्रायः असाध्य होते है । अस्तु, उपर्युक्त चिह्नो के मिलने के पूर्व ही गीघ्रता से उपचार प्रारभ करे। १ गर्भपात-निमित्तश्च गोणितातिसवाच्च यः । अभिघातनिमित्तश्च न सिद्धयत्यपतानकः ।। विवर्णबद्ध वदन नस्ताङ्गो नष्टचेतन । प्रस्विद्यश्च धनु स्तम्भी दशरात्रं न जीवति ॥ ( यो. र.) अथापतानकेनातमन्न ताममवेपनम् । लखवापातिनं चैव त्वरया ममुपाचरेत् ।। ( भा. प्र.)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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