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________________ ४३८ भिपकर्म-सिद्धि प्रेत ग्रहों के आवेश प्रकार कुछ लोगों का कहना है यदि ग्रहो का शरीर में प्रवेश होता है तो एक शरीर में दूसरे का प्रवेश किस प्रकार स्वीकार किया जा सकता है | इसका उत्तर यह है कि जिस प्रकार दर्पण जैसे चमकीली वस्तु में प्रतिविम्व चला जाता है, अथवा प्राणियों के शरीर में जिस प्रकार उता एवं शैत्य का प्रवेश हो जाता है अथवा जिस प्रकार सूर्य की किरणें सूर्यकान में प्रविष्ट हो जाती है दिखाई नहीं पडती फिर भी अपना प्रभाव दिखलाती है अथवा जैसे अदृश्य आत्मा गर्भ शरीर में प्रवेश कर जाता है उसी प्रकार मनुष्यो के शरीर में प्रविष्ट हो जाते है किन्तु चर्म चक्षु मे दिखाई नही पड़ते परन्तु उनका प्रभाव दिखाई पड़ता है । जब ये शरीर में प्रविष्ट कर जाते है तो मनुष्य के शरीर में दु. मह पीड़ा पैदा करते है । दर्पणादीन यथा छाया शीतोष्णं प्राणिनो यथा । स्वमणि भास्करार्चिश्च यथा देहं च देहधृक् ॥ विशन्ति न च दृश्यन्ते ग्रहास्तद्वच्छरीरिणः । प्रविश्याशु शरीरं हि पोडां कुर्वन्ति दुःसहाम् || ( मुउ ६०) अदूपयन्तः पुरुषस्य देहं देवादयः स्वस्तु गुणप्रभावः । विशन्त्यदृश्यास्तरसा यथैव च्छायातपो दर्पणसूर्यकान्तौ । (च.चि. ६ ) देवादि का आक्रमण या आवेश काल: देव ग्रह पूर्णिमा के दिन आक्रमण करते है, अतः यदि किसी रोगी को पूर्णिमा के दिन दौरा जावे या रोग का आरंभ हो तो देव ग्रहों का उपसर्ग समझना चाहिये । यदि प्रातः या सायं काल में दौरा जावे या रोग का आक्रमण हुला हो तो अमुर ग्रह का प्रकोप समझे । यदि अष्टमी के दिन रोग प्रबल हो वयवा रोग का आक्रमण हो तो गन्धर्व ग्रह का और प्रतिपदा के दिन पागलपन का दौरा हो तो यक्षग्रह के प्रकोप का अनुमान करना चाहिये । अमावास्या के दिन दौरा जाने पर पितृग्रह तथा पंचमी को दौरा आने पर सर्पग्रह के आक्रमण का अनुमान करे । इसी प्रकार रात्रि मे दौरा जाने पर राक्षस ग्रह और चतुर्दशी को दौरा थाने या रोग का आरम्भ होने पर पिशाच ग्रह का अनुमान करना चाहिये । देवप्रहाः पौर्णमास्यामसुराः सन्ध्ययोरपि । गन्धर्वाः प्रायशोऽष्टम्यां यक्षाश्च प्रतिपद्यथ ॥ पित्र्याः कृष्णक्षये हिंस्युः पञ्चम्यामपि चोरगाः । रक्षांसि रात्रौ पैशाचाचतुर्दश्यां विशन्ति हि ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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