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________________ भिपकर्म-सिद्धि ४३६ } महिष्णुता तथा अमानृपिक कार्य तथा चेष्टायें भूतोन्माद से युक्त व्यक्तियो मे पाई जाती हैं : गुह्या-नागत-विज्ञानमनवस्थाऽसहिष्णुता । क्रिया वासानुपी यस्मिन् स ग्रहः परिकीर्त्यते ॥ आगन्तुक उन्माद ८ प्रकार के होते है -- जैसे -- ( सुश्रुत से संगृहीत माधवनिदान के पाठानुसार ) १ देवजुष्टोन्माद -- देवग्रह के कारण पागल मनुष्य सदा सतुष्ट रहता है । वह पवित्र रहता है और उसके शरीर से अकारण ही उत्तमोत्तम पुष्पो को गन्ध आती रहती है । उसे निद्रा और तन्द्रा नही आती । सत्य बोलता है तथा धारा-प्रवाह शुद्ध संस्कृत में भाषण करता है। रोगी तेजस्वी होता है, उसके नेत्र भी स्थिर रहते है । आस पास के लोगो को वरदान देता है, और ब्राह्मणो की पूजा करता है । संतुष्टः शुचिरतिदिव्यमाल्यगन्धो निस्तंद्रीरवितथसंस्कृतप्रभापी । तेजस्वी स्थिरनयनो वरप्रदाता ब्रह्मण्यो भवति नरः स देवजुष्टः ॥ (सु ३.६० ) २. देवशत्रुजुष्ट - ( दानव या असुरजुष्ट ) -- असुर ग्रह से पीडित मनुष्य को पसीना बहुत आता है । वह ब्राह्मण, गुरु और देवताओ के दीप का वर्णन करता है। आंखें तिरछी रहती है और वह किसी से नही डरता। ऐसे रोगी की प्रवृत्ति सदा कुमार्ग पर चलने की रहती है । बहुत खाने पर भी उसको तृप्ति नही होती तथा वह दुष्ट प्रकृति का होता है । संस्वेदी द्विजगुरुदेवदोपवक्ता जिह्याक्षो विगतभयो विमार्गदृष्टिः । संतुष्टो न भवति चान्नपानजातैर्दुष्टात्मा भवति स देवशत्रुजुष्टः ॥ ३- गन्धर्व ग्रह पीडित उन्मन्त - सदा प्रसन्न रहता है, नदी के किनारे या उपवनों में घूमने में आनन्द का अनुभव करता है । जिसका आचरण शुद्ध हो, जिसको मगीत और गन्धमाल्यो से अधिक प्रेम हो एवं जो सुन्दरतम ढंग से नाचता हुआ मद मद मुसकराता हो उसे गन्धर्व ग्रह से पीड़ित समझना चाहिये । हण्टात्मा पुलिनवनान्तरोपसेवी स्वाचारः प्रियपरिगीतगन्धमाल्यः । नृत्यन्वं प्रहसति चारु चाल्पशब्दं गन्धर्वग्रहपरिपीडितो मनुष्यः ॥ ४ यक्षविष्ट - जिस उन्मादी की औसे लाल हो, जिसको सुन्दर, वारीक तथा लाल रंग के वस्त्र धारण का गोक हो, जो गम्भीर और शीघ्रगामी हो, जो कम वोले और सहनशील हो, देखने से तो तेजस्वी मालूम हो एवं जो
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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