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________________ भिपकर्म-सिद्धि व्यपाश्य चिकित्सा करते हुए और साथ में कुछ देवव्यपाश्रय उपाय बतलाते हुए उपचार करना संभव रहता है। परन्तु कुछ ऐसे भी रोग चिकित्सको के सम्मुन्त बाते है जिसका रहस्य समझ में नहीं आ पाता है और उनमे नाविभौतिक उपचार कुछ भी लाभ नहीं करता है और विशिष्ट देव-व्यपाश्रय उपक्रमो से उनमा गमन करना संभव रहता है। इस प्रकार का रहस्यमय मानस रोग भूतविद्या के विषय हो जाते हैं। क्हतं का तात्पर्य यह है कि आधि या मानसिक रोगो के दो वर्ग है-१. सामान्य माधियाँ २ विशिष्ट माधियां । मामान्य प्राधियो के रहस्य का तो भेद लग जाता है और कुछ सामान्य देव-व्यपाश्रय उपक्रमो की सहायता से प्रधानतया युक्ति-व्यपाश्रय उपायो द्वारा उपचार सामान्य व्यक्ति भी कर लेता है। दूसरे वर्ग में विशिष्ट मावियो को समझना चाहिये-जो परमगढ, रहस्यमय और अप्रतऱ्या होती है जिनका उपचार विगेपनो का विषय रह जाता है। इस प्रकार को विशिष्ट रहस्यमय व्याधियां और उनका उपचार भूत-विद्या का विषय हो जाता है । इन व्याधियो की कोई तर्कसंगत व्याख्या या उपचार असंभव हो जाता है । ___इस प्रकार की विशिष्ट व्याधियो के हेतु, लक्षण, मंना एवं उपचार पूर्णतया स्वतंत्र ढंग के होते है, उनका मायुर्वेद के अन्य सात संगो (गल्य-गालाक्य, बगदतंत्र, कौमार भृत्य, रसायन, कल्प तथा वाजीकरण) के साथ कोई पूर्वापर सम्बन्ध भी नही रहता है । इनके उपचार करने वालो के लिये भी कोई गेप अन्य लंगो की विगेप अपेक्षा नहीं रहती है। इस विपय का अविक सम्बन्ध मन्त्र शास्त्र से हो जाता है। तत्र-मंत्र-यत्र के द्वारा उपचार करते हए इन आधियो में भान्ति मिलती है। मंत्र शास्त्र के अनुसार चिकित्सा करनेवाले चिकित्सको का एक स्वतन्त्र सम्प्रदाय है जिन्हें तान्त्रिक या मोझा-सोखा कहते है । विशिष्ट प्रकार का माधिो का उपचार करना उन विपनो का हो विषय है। भूत-विद्या का विशेषज्ञ वास्तव में तत्रिक या मंत्रगास्त्रज्ञ ही होता है। सामान्य चिकित्सक को पुछ मामान्य बातो का ज्ञान हो जाना ही पर्याप्त है--जिनके आधार पर वह विशिष्ट तंत्रजो से सलाह लेने के लिये रोगी को भेज सके। चिरित्सा शास्त्र के विद्यार्थी को बहुविध ऐसे विषय पढाये जाते है जिनका उनके परवर्ती कार्यक्षेत्र में काम नहीं पड़ता है। जैसे-प्रसूति तंत्र, स्त्रीरोग तथा गल्यतंत्र-सम्बन्धी बृहत् शस्त्र वर्म (Major operations ) । एक मामान्य चिकित्सक के लिए कार्य क्षेत्र में आने पर विशेषत. काय-चिकित्सक के लिये इन दमों का व्यवहार अप्रामगिक हो जाता है। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि इन विषयों का ज्ञान कराना उसके लिये निरुपयोगी या
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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