SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 471
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ खण्ड : एकीसवाँ अध्याय ४२१ दानान्त होता है। यदि अवयव विशेप में जैसे हाथ-पैर के तलवे में हो तो केवल यही पर लगाना चाहिये । प्रदेह चा लेप नीम को पत्तो को पोसफर एक मिट्टी के बर्तन में पानी डालकर मधकर उनले फेन ने लेप करने से दाह मान्त होता है। विशेषतः विसूचिका के अनन्तर होने वाले उदर के दाहम लाभप्रद पाया गया है। इससे तृपा, दाह और मूर्छा मे भी आराम होता है। ४ जी का सत्तू, बांबला, बेर फो गुठली या मज्जा, नाम का पन्ना (कच्चे मन को बाग में पकाकर उसका लेप) काजी के साथ पीस कर लेप करना भी दाहशामक होता है। ५. चारो वृक्ष को छाल, श्वेत चदन को दूध में पीस कर पूरे बदन में लेप करना। ६. प्रियन, लोध्र, सस, नेनवाला, नागकेसर, तेजपात, मोथा और चन्दन का लेप। शय्या-बोले के पन अथवा कमल के पत्ते पर सोना । आच्छादन-काजी से आई किये वस्त्र के द्वारा पूरे शरीर का मावृत करना। परिपेक तथा अवगाहन-सुगन्धवाला, पद्माख, खस और सफेद चन्दन को पानी में सोलाकर ठण्टा हो जाने पर उसे एक द्रोणो मे भरकर डुवको लगाकर स्नान । केवल शोतल जल से स्नान भी लाभप्रद होता है। काथ-पपेटादि कपाय-पित्तपापडा, खस और मोथा इनका सम भाग में लेकर बनाया पवाथ मिश्री के साथ पीना दाहशामक होता है। धान्यक हिम-धनिया को रात्रि में मिट्टी के वर्तन में भिगोकर उसको सुवह मसल कर छान कर मिश्री के साथ पीना सुन्दर दाहशामक होता है। ___ चूणे-चंदनादि चूर्ण-चदन, खस, कूठ, नागरमोथा, आंवला, नील कमल का फूल, मुलेठी, महुए का फूल, मुनक्का, खजूर, छोटी इलायचो, ककडी का वीज, खीरे का वीज, धनिया समभाग और सब के बरावर मिश्री मिलाकर बनाया चूण । मात्रा ३ माशे । अनुपान शीतल जल । १ सहस्रपौतेन घृतेन वापि दिग्धस्य दाह कृशता वित्ति । अन्याङ्गनासगसमादरस्य स्वीयेषु दारेषु यथाभिलाषः ॥ २ तृड्-दाह-मोहा. प्रशम प्रयान्ति निम्बप्रवालोत्थितफेनलेपात् । यथा नराणा धनिना धनानि समागमाद्वारविलासिनीनाम् ।। ( वै जी.)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy