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________________ चतुर्थ खण्ड : तेरहवा अध्याय ३७१ कपडे से छान कर वोतलो मे भर ले । मात्रा १ से २ तोला बरावर पानी मिला कर तीन वार दिन मे । वातिक और पैत्तिक कास मे लाभप्रद । खांसी से कफ निकलता हो तो इसके प्रगोग से कफ ढीला होकर आसानी से गिर जाता है। ___ अगस्त्यहरीतकी-दशमूल की प्रत्येक औषधि ८ तोला, केवाछ के बीज, शखपुष्पी, कचूर, बलाकी जड, गजपीपल, अपामार्ग मूल, पीपरामूल, चित्रक मूल,भारङ्गो मूल, पुष्कर मूल प्रत्येक ८ तोला । वस्त्र की पोटली मे बंधा जौ ३ मेर १६ तोला, वडी हरड १००, जल ३२ सेर । सवको एक बडे भाण्ड मे रख कर अग्नि पर चढावे । जव जल कर चौथाई पानी शेष रहे तो भाण्ड को नीचे करके ठंडा करे । पानी को छान लेवे । अब हरड को पृथक् करके प्रत्येक हरड को पतली नोकदार शलाका ( Fork ) से-सूए से कई छेद कर ले । फिर कलईदार कडाही मे घृत ३२ तोले, तिल तैल ३२ तोले डाल कर भट्टी पर चढाकर घृत और तेल के प्रतप्त हो जाने पर उसमे विधे हुए हरीतकी के फलों को भूने जब भुन ने पर हरीतकी का जलाश सूख जाये वह लाल हो जाय, उसमे सुगंध आने लगे तो कडाही को उतार कर हरडो को एक बर्तन मे पृथक् रख ले । अब कडाही मे उपयुत क्वाथ जल में ५ सेर पुराना गुड डाल कर आग पर चढावे । जव एक तार की चाशनी बनने लगे तो उसमे स्नेह मे भर्जित हरड को छोडे जब पाक समीप आवे तो उसमें १६ तोले पिप्पली का चूर्ण डालकर मालोडित करके उतार लेवे । शीतल हो जाने पर उसमे ३२ तोले शहद मिलाकर किसी मृतवान मे भर कर सुरक्षित रख लेवे । मात्रा प्रतिदिन २ से ४ हरड का सेवन । दूध या जल से करे । यह अगस्त्य ऋपि के द्वारा प्रोक्त रसायन है। सर्वकास मे प्रशसित है। । च्यवनप्राश तथा वासावलेह पूर्वोक्त क्षय रोगाधिकार का भी प्रयोग कास मे लाभप्रद है। । विभीतकावलेह-बकरी का मूत्र ५ सेर, विभीतक फल का चूर्ण ५ सेर । अग्नि पर चढाकर सिद्व करे । सिद्ध होने पर उतारे और ठडा हो जाने पर मधु आधा सेर मिलाकर रख ले । कास और श्वास रोग मे यह एक श्रेष्ठ योग है। १ वासावलेह-का सेवन भी उत्तम रहता है । - - - १ आजस्य मूत्रस्य शतं पलाना शत पलाना च कलिद्रुमस्य । पक्वं समध्वागु निहन्ति कासं श्वास च तद्वत् सबलं बलासम् ॥ (वै० जी०)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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