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________________ ३५२ भिषकर्म-सिद्धि बिल में रहने वाले चूहे, गृव्र, गदहा, ऊँट, हाथी , घोड़ा, खच्चर इन मासो को सर्पप तेल में भूनकर सेंधा नमक मिलाकर देना चाहिए। बाज के युग में जलचर और जलजात सामुद्रिक मछलियो के यकृत तैल का प्रयोग बहुलता से हो रहा है । नाक और कार्क मछली का यकृत अधिकतर व्यवहार में आता है इन प्रयोगो से भी बातुओ का वर्णन होता है। __ मद्यसेवन-(Medicated wines) क्षयरोग की चिकित्मा मे मद्य तथा माम का सेवन कराने का बडा माहात्म्य बतलाया है। मास के भोजन का कार मे उल्लेख हो चुका है, अब मद्य की विशेषतायें वतलाई जा रही है । मद्य कई प्रकार के निर्माण, द्रव्य एव बलकोहल ( Alcohol ) को प्रतिशत मात्रा के ऊपर हो सक्ते हैं जैसे प्रसन्ना, वारुगी, सीधु, गरिष्ट, नामव, मध्वासव आदि । आधुनिक युग में भी मद्य कई प्रकार के पाये जाते है । जैसे-वीयर, गेम्पेन, ह्विस्की, रम, जिन, ओडका, ब्राण्डी, प्रभृति । ___मांसाहार में सर्वोत्तम अनुपान मद्य का माना जाता है। अस्तु मांससेवन के साथ ही साथ मद्य-पान का भी विधान है। मद्य में कई विशिष्ट गुण होते हैजैसे वह तीक्ष्ण, उष्ण, विशद और मून गुण वाला होता है फलत वह स्रोतो के द्वारो को जो यक्ष्मा रोग में अवाट्ट हो जाते हैं मथकर खोल देता है। जिससे रस. रक्तादि सप्त धातुबों का पोपण होने लगता है और इनके पोपण के परिणाम स्वरूप रोगी में धानुमो की वृद्धि प्रारंभ हो जाती है और क्षय या शोप गोव्रता से दूर हो जाता है। बस्तु चरकाचार्य ने लिखा है "नियमित रूप से मांस का सेवन करते हुए और माध्वीक (मन) को पीते हुए स्थिर चित्त वाले संयमशील मनुप्प के गरीर में गोप रोग चिरकाल तक नहीं रहता है।" अर्थात् शीघ्र ठीक हो जाता है । इस प्रकार मय का अनुपान करते हुए मास के सेवन से रोगराज के दूर करने का विधान प्राचीन ग्रंथो में पाया जाता है।' बहिर्मार्जन या बहिः स्पर्शन (अवगाहन)-राजयटमा रोग में ज्वर एवं दाह के गमन के लिये जीर्ण ज्वर में कहे गये विधानो में जो क्रिया विधि वतलाई गई है उनका सम्पूर्णतया प्रयोग करना चाहिये ।। १ माममेवाग्नत गोपो माध्वीकं पिवतोऽपि च । नियतानल्लचित्तस्य चिरकाये न तिष्ठति ॥ प्रसन्ना वारुगी सीधुमरिष्टानासवान् मधु । ययामनुपानार्थ पिबेन्मांसानि भनयत् ।। मद्य तैदण्योष्ण्यवेगवात्सूक्ष्मत्वात् स्रोतसा मुखम् । प्रमथ्य विवृणोत्याग तन्मोलात् सप्त धातव. ।। पुष्यन्ति वातुपोपाच्च गीत्र गोप. प्रगायति । ( च )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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