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________________ चतुर्थ खण्ड : बारहवाँ अध्याय ३५१ वृद्धि करता है । राजयक्ष्मा रोग मे मास धातु का बहुत क्षय हो जाता है, अस्तु मास सेवन से ही उसकी पूर्ति सभव रहती है। एतदथ यक्ष्मा के रोगियो मे मास का बहुलता से सेवन कराने का विधान शास्त्र मे पाया जाता है। ___ चरक तथा सुश्रुत सहिता मे ऐसे बहुत प्रकार के जीवो के मास सेवन कराने का विधान बतलाया गया है जिनका सामान्य भोजन के रूप मे व्यवहार नही पाया जाता है। इन मासो के प्रति अनभ्यास के कारण रोगी को घृणा हो सकती है । अस्तु इस प्रकार के अनिष्ट (जो रोगी को अभीष्ट नही है ) मासो का प्रयोग रोगी से छुपाकर दूसरे नामो से जो खाद्य मासो मे आते है बढिया स्वादिष्ट बनाकर मनोज्ञ, मृदु, रस्सेदार और सुगंधित करके देना चाहिये ताकि उनको रोगी विना किसी प्रकार की घृणा के भाव से सेवन कर सके। अन्न-पान मे प्रयुक्त होनेवाले मासो के आठ वर्ग है प्रसह, भूशय ( जमीन में विल बनाकर रहने वाले ), आनूप, वारिज (जल मे पैदा होनेवाले ) वारिचर (जल मे चलनेवाले ) ये विशेष रूप से वृहण होते हैं इनका शोप मे वाताधिक्य होने पर प्रयोग करे । प्रतुद (चोच से ठोग मारने वाले पक्षो) विष्किर ( पैर से विखेर कर खानेवाले पक्षी )। तर्था धन्वज (जाङ्गल पशु-पक्षी) ये लघु होते है, अस्तु शोप मे कफ-पित्त की अधिकता मे इनका व्यवहार करे ।२ शोप मे वहीं ( मयूर ) का मास दे और बी का मास कह के गोध, उलक और चाप (वाज) का मास स्वादिष्ट बनाकर रोगी को खाने को दे । तीतर के नाम से काक का मास, वर्मि ( एक प्रकार की लम्बी जल की मछली), घृत मे भुने केचवे का मास, खरगोश के मास के नाम से लोपाक (मृग विशेप), मोटे न्योले, बिल्ली, शृगाल के बच्चो के मास दे। हिरण के मास के नाम से सिंह, व्याघ्र, तरक्ष (भेडिया), चीते आदि मास खाने वाले पशुओ का मास देना चाहिए । हाथी गैडा, घोडे का मास भेसे के मास के नाम से दे। इनमे मयूर, तीतर, मुर्गा, हस, सूअर, ऊँट, गदहा, गो, माहिष के मास परं मासकर माने जाते हैं । सुश्रत ने निम्नलिखित पशु-पक्षियो के मासो का नाम शोप रोग मे व्यवहार के लिए लिखा है -काक, उल्लू, न्योला, विडाल, गण्डूपद (केचुवा) व्याल, १. योनिरष्टविधा प्रोक्ता मासानामन्नपानिके । ता परोक्ष्य भिषग्विद्वान दद्यान्मासानि शोपिणे ॥ २ विधिवत् सूपसिद्धानि मनोज्ञानि मृदनि च । अस्रवन्ति सुगन्धीनि मासान्येतानि भक्षयेत् ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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