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________________ चतुर्थ खण्ड : ग्यारहवाँ अध्याय ३३७ में फल, लक्ष (पाक के फोपल), सेमल के फूल, चौलाई, नीम को कोमल पत्ती, मागड, पतलो मूली, पलाण्ड, बेत के कोमल पत्र और गाम्भारो के फलफरया पा चाक उत्तम रहते है । इन गाको को घी मे भून कर नमक मिला पर अनारदाने या बनार में कुछ पट्टा करके ( यदि सट्टा रोगी को प्रिय हो तो) देना चाहिये। मानसात्म्य व्यक्तियों में जाङ्गल पशु-पक्षियो के मासरस जैसे पारावा, फपोत (बूनर), हिरन, सरगोश, लवा, बत्तस, वटेर, तीतर आदि या नष्ट मन्यवयुक्त मामरस देना चाहिये । मागमात्म्य व्यक्तियो में रक्तपित्त को अवस्था में विबंध हो तो वथुवे के रन मे सरगोश के मान को पका कर दे। वात की उल्वणता हो तो उदुम्बर (गुलर) के रस में पकाये तित्तिर का मासरस देना चाहिये । अथवा पाकड़ के कपाय में पकाये मयूर का माम अथवा बरगद के फल या शुग के रस मे पकाये मुर्गे का मास अथवा नोलोफर या कमल के रस में पकाये वटेर का मास देना चाहिये। दूध मे गाय या बकरी का दूध पथ्य होता है। माहिप घृत या गोघृत, मपवन उत्तम रहता है। फलो में आंवला, सजूर, वेदाना, अनार, मुसम्मी, मोठा संतरा, नेव, केला, फालसा, सिंघाडा, कसेरा, सौफ, कमलनाल (विस ), कमलगट्टा, मोठा अगूर, मुनक्का, किशमिश, ताड का फल, नारिकेल जल ( डाव फा पानी), ईस या गन्ने का रस, मिश्री, चीनी का उपयोग उत्तम रहता है। ___ आचार या विहार-रोगो को पूर्ण विश्राम देना चाहिये । रोग-काल में भूमिगृह ( तहखाने ), धारागृह (जिस घर के छत पर जल की धारा गिर रहो हो), हिमालय (ठडे स्थान पर) अथवा दरोगृह (पर्वत की ऐसी कदरा जहा निर्सर या प्रपात हो), शीतल उपवन, शोत स्थान या जलाशय जैसे किसी वडी नाव-तली में जो भाग जल में डूबा रहता हो रोगो को रखने की व्यवस्था करनी चाहिये। अवगाहन या ठडे जल का स्नान, शीतल वायु के सेवन, चन्दन-रक्त चदनपुण्डरीक-कमल-नोलोत्पल प्रभृति शीतल द्रव्यो को पीस कर लेप, पुष्करिणी की कीचड का लेप, मनोनुकूल तथा हर्पप्रद कथा-सगोत प्रवचन, सोने और बैठने के लिए मनोनुकूल गय्या उस के ऊपर कमल पत्र पुष्प का विछौना या केले के पत्ते का बिछौना, पद्म और उत्पल की ठडी हवा, मुक्ता-वैदूर्य प्रभूति मणिभाजनो को जल से 2डा करके स्पर्श करना या माला रूप मे धारण या अन्य सुगधित पुष्पो की माला, चादनी का सेवन, नौका-विहार, प्रियङ्गु, चन्दन आदि से दिग्ध शरीर-वराङ्गनावो का स्पर्श प्रभृति वाह्योपचार रक्तपित्त मे लाभप्रद २२ भि०सि०
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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