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________________ भिपकर्म-सिद्धि संशमन-जिस रोगी का बल-माम बहुत क्षीण हो गया हो, जो चिन्ताशोक-कार्याधिक्य, अतिपरिश्रम, वोझ अधिक ढोने या रास्ता अधिक चलने से दुर्वल हो अथवा जो अग्नि (भट्ठी पर काम करने वाला) तथा सूर्य-मताप से मतप्त हो, अथवा दूसरे किसी रोग से पीडित रहा हो और उपद्रव रूप मे रक्तपित्त का रोग पैदा हुआ हो अथवा गर्भिणी, वृद्ध, वाल, रूस, अल्प और सीमित भोजन करने वाला व्यक्ति हो ( under nourished ) अथवा अन्य किसी कारण से रोगी को अवम्य ( न वमन देने लायक ) यद्वा अविरेच्य (न विरेचन देने योग्य) समझा गया हो अथवा गोप का अनुबंध रोगी में पाया जावे तो उसमें सशोधन न देकर मगमन की क्रिया प्रारंभ मे करनी च हिए । सगमन का अर्थ यहाँ पर रक्तस्तभक योगो के प्रयोग से है। सामान्यतया पहले दोपो के सगोधन के अनन्तर ही सगमन का विधान है। परन्तु आत्ययिक अवस्था में ( Incases of emergency ) जिनका ऊपर मे उल्लेख हो चुका है संगमन के कर्म से चिकित्सा का प्रारभ करना चाहिए । निदान परिवर्जन-रक्तपित्त की उत्पत्ति मे कारणभूत पदार्थों का पूर्णतया परित्याग करना चाहिए । साथ ही निम्नलिखित आहार-विहार या अन्न-पान का अनुष्ठान करना चाहिए। अपथ्यो में कुलथी, गुड, वैगन, तिल, उडद, सरसो, राई, दही, बार, लवण, लहसुन, मद्य, सेम, पान, अम्ल एवं विदाही पदार्थ, गर्म ममाले, विरुद्ध भोजन, मछली, क्रोच करना, धूप या आग का सेवन, मैथुन, स्वेदन, धूमपान, मूत्र-पुरीपादि वेगो को रोकना, भार वहन, अध्वगमन, व्यायाम, परिश्रम, पैदल या तेज सवारी मे चलना प्रभृति पदार्यो का परिहार करना चाहिए। आहाराचार-रक्तपित को चिकित्मा मे याहार ( अन्न-पान ), माचार ( विहार ) का बहुत वडा महत्त्व है। प्रधान भोजन में पुराना गालि या साठी का चावल, कोदो, सावा, कगुनी, तिन्नी का चावल, साबूदाना प्रभृति अन्नोका मोदन देना चाहिये। ये परम ग्राही एव लघु अन्न है। दाल के लिए मूग, ममूर, चना, मोठ या अरहर प्रयोग करना चाहिये । इनमे मसूर की दाल लघु और ग्राही होने से तथा मूंग की दाल लघु और शीतवीर्य होने की वजह से अधिक उत्तम पडती है । गाक में लौकी, परवल, भिण्डी, गूलर, वश्रुवा, केला, कचनार १ वलमासपरिक्षीण गोकभाराबकशितम् । ज्वलनादित्यसतप्तमन्यैर्वा क्षीणमामय ॥ गर्भिणी स्थविर बालरुक्षाल्पप्रमितागनम् । अवम्यमविरेच्यं वा यं पश्येद्रक्तपित्तिनाम् ॥ गोपेण सानुबन्ध वा तस्य मगमनी क्रिया । गस्यते रक्तपित्तस्य पर साऽथ प्रवक्ष्यते । (च चि. ४)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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