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________________ चतुर्थ खण्ड : दसवाँ अध्याय ३२५ चूर्ण २ मा० रात में सोते वक्त पुराने गुड के साथ । मोजनोत्तर आसवारिष्टो की व्यवस्था की जा सकती है। मांसरस-पाण्डु रोग या रक्तक्षय मे बकरे, भेड या खरगोश के रक्त का पिलाना या आमागय का खिलाना प्रशस्त माना गया है। यदि ये सुलभ हो तो रोगी के लिए इसकी व्यवस्था करनी चाहिए। सामान्य-पथ्यकर भोजनो के साथ यकृत् मास का सेवन अधिक लाभ करता है। रक्तोत्पत्ति की क्रिया को उत्तेजना मिलती है, शरीर में रक्त बढता है और पाण्डुता दूर होती है । ___ आजकल आमाशय सत्त्व तथा यकृत् सत्त्व के कई योग वाजारो मे सुविधा से प्राप्त होते है । पोने के शवंत के रूप मे तथा पेशीमार्ग से सूचीवेध के द्वारा प्रयोग होता है। इन आयुर्वेदीय योगो के साथ इन योगो का प्रयोग अधिक लाभप्रद होता है। इन दोनो के उपयोग मे परस्पर मे कोई विरोध भी नही होता। ___अत्यधिक रक्त की कमी मे रक्त का अत भरण (Blood Transfusion) योग्य मानव-रक्त का शिरा द्वारा शरीर मे प्रबिष्ट करना मी आज को एक सिद्ध प्रक्रिया है। यथासमय इसका उपयोग किया जा सकता है । पाण्डु रोग मे पथ्य-पाण्डु रोग मे मानसिक एवं शारीरिक परिश्रम छोडकर पूर्ण विश्राम करना चाहिए । रोगी को विस्तर पर लेट कर रहना चाहिए। भोजन मे दूध, छाछ, मोसम्मी, माल्टा, सेव, दाडिम, अनार, खरबूजा, मीठानीबू ईख या गन्ने का रस, पके आम का प्रयोग अधिक करना चाहिए। मीठा आम पाण्डु रोग मे अमृत के तुल्य रहता है । अन्नो मे पुराने चावल का भात, मूग की दाल, हल्के शाक देने चाहिए। रोगी के लिए ब्रह्मचर्य से रहना अच्छा रहता है। यह पथ्य कामला रोग मे भी उत्तम रहता है। कामला प्रतिषेध सामान्य या कोष्टाश्रया कामला में क्रियाक्रम-कामला वाले रोगी का घृत ( महातिक्त, त्रिफला, पचगव्य, कल्याण, हरिद्रादि या द्राक्षादि घृत') से स्नेहन करके तिक्त रस वाले द्रव्यो से मृदु विरेचन कराना चाहिए। पश्चात् शामक औपवियो का प्रयोग करना चाहिए । इस प्रकार स्नेहन, विरेचन, पश्चात् शमन तीन उपक्रम कामला की चिकित्सा मे व्यवहृत होते है। कामला के रोगी मे नित्य मृदु विरेचक औपधि का प्रयोग उत्तम रहता है। भेपज-१ त्रिफला चूर्ण का मधु के साथ सेवन, .२ गुडूची स्वरस मे मधु १ रेचन कामलार्तस्य स्निग्धस्यादी प्रयोजयेत् । तत प्रशमननी कार्या क्रिया वैद्यन जानता ॥ (भे र ) कामली तु विरेचनै । ( च०)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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