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________________ चतुर्थ खण्ड : दसवाँ अध्याय ३१६ लेकर अग्नि पर चढा कर मंद अग्नि से पाक करे । तेल के लगाने से सिर के केशो के या अन्यत्र सम्पूर्ण त्वचा पर पाये जाने वाली कृमियाँ नष्ट हो जाती है। ६ धुस्तूर तैल-धतूर के पत्र-स्वरस से सिद्ध सर्पप तैल भी ऐसा ही कार्य करता है। अपथ्य-कृमि रोग मे विशेषत श्लेष्मज, पुरीषज तथा रक्तज कृमियो मे कच्चा दूध, आनूप मास, मछलो, दही, अविक स्निग्ध भोजन, गुड, अधिक मधुर ( मिष्ठान्न ) सेवन, पत्र शाक, उडद, अति द्रव अन्न, कच्चा जल ( बिना उवाला), विना उबाला या पकाया शाक-भाजी, तरकारी तथा दिवास्वाप (दिन का सोना) निपिद्ध है। एतद्-विपरीत आहार-विहार पथ्य है। पाण्डु तथा कामला प्रतिषेध प्रावेशिक-रक्तक्षय या किसी कारण से रक्त की कमी हो जाने से जब रोगी को त्वचा, नेत्र, मुख, जिह्वा, नख, मूत्र और मल ईपत् पोत युक्त श्वेत वर्ण के हो जाते है तब उस रोग को पाण्डु रोग कहा जाता है और रोगी को पाण्डुपीडित रोगी। रक्त की मात्रा की कमी के अनुसार रोगी की त्वचा का वर्ण पीत या श्वेत कई प्रकार का हो सकता है। दोपो के अनुसार भी लक्षण तथा त्वचा, नख आदि के वर्ण मे विविधता आ सकती है। अस्तु दोषभेद से वातिक, पैत्तिक, श्लैष्मिक सन्निपातज भेद से चार प्रकार का पाण्डु रोग होता है । पाण्डु रोग का एक पाँचवा भेद मृज्ज-पाण्डु का होता है-जिसमे रोगी मे मिट्टी खाने का इतिवृत्त पाया जाता है और अधिक मिट्टो खाने के परिणाम-स्वरूप रक्त क्षय हो पाण्डुता आई हो। इस प्रकार शास्त्रीय दृष्टि से पाण्डु रोग के पांच प्रकार हो जाते है। नेत्र के अधोवर्म को नीचे की ओर अगुलि से दवा कर अथवा जीभ के वर्ण को देख कर रक्त की कमी या पाण्डु का विनिश्चय सरलता से किया जा सकता है। पाण्डु रोग से हेतु, लक्षण तथा चिकित्सा से साम्य रखने वाला दूसरा रोग कामला है। हेतु, लक्षण एव चिकित्सा मे बहुत कुछ साम्य होने के कारण दोनो रोगो का एक ही अध्याय मे वर्णन प्राय प्राचीन ग्रथो मे पाया जाता है। व्यावहारिक दृष्टि से दोनो की चिकित्सा भी बहुत अशो में समान ही रहती है। पाण्डु तथा कामला मे भेद यह होता है--कामला मे पित्त की बहुलता पाई जाती है। फलत इसमे त्वक, मूत्र, नेत्र का वर्ण अधिक पीला हो जाता है। यह पीतता सर्वाधिक नेत्र के श्वेत भाग ( Conjuctiva. ), जिह्वातल तथा
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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