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________________ ३१८ भिपकम-सिद्धि चीयाई काढा गेप रहे तो उसमें विडङ्गादि तैल २ तोला मिलाकर । आस्थापन वस्ति के प्रयोग से गुदा से पुरीपज कृमियाँ ( Threadwomrs ) निकल जाती है। क्रिसिकालानल रस-शुद्ध पारद मीर शुद्ध गधक की सममात्रा में बनी कज्जली १ भाग, वायविडङ्ग १ भाग, शुद्ध वत्मनाभ विप भाग । बकरी के दूध मे पीसकर । २ रत्तो की गोली । धनिया और जीरा के अनुपान से सेवन । कृमिमुद्गर रस-शुद्ध पारद १ तोला, शुद्ध गंधक २ तोला, अजमोदा का चूर्ण ३ तोला, वायविडङ्ग चूर्ण ४ तोला, शुद्ध कुपीलु वीज का चूर्ण ५ तोले तथा शुद्ध पलाशवीज चूर्ण ६ तोले । सभी प्रकार की कृमियो मे लाभ-प्रद । मात्रा २ से ४ रत्ती। अनुपान मुस्तक कपाय । विडज लोह --शुद्ध पारद, गवक, मरिच, जायफल, लवङ्ग, पिप्पली, शुद्र हरताल, गुण्ठी, वग भस्म प्रत्येक एक एक तोला, लौह भस्म ९ तोले तथा वायविडङ्ग १८ तोले । अकुग मुख कृमि तथा तज्जन्य पाण्डु में लाभप्रद । मात्रा-१ मागा । अनुपान मधु । बाह्य क्रिमियों में चिकित्सा-स्नानादि के द्वारा तथा वस्त्रादि के प्रक्षालन और सूर्य के धूप में रखने प्रभृति सफाइयो से वाह्य कृमियो में लाभ होता है। माथ ही कई प्रकार के लेप, तेल तथा धूप भी प्रशस्त है। जैसे १. नाडीच (काल शाक ) के बीजो को काजी के साथ पोम कर सिर पर लेप करने से गिरोगत केगो की यूका तथा लिक्षा नष्ट हो जाती है। २ वनूर के या पान के रस मे पारे को खरल कर लेप करने से भी यह लाभ प्राप्त होता है। ३ साने वाली तम्बाकू का शीतल कपाय बालो मे मलना अयवा लाल कनेर की पत्तियों के काढे मे मिर के केगो का धोना भी यूका-लिखा को नष्ट करता है। ४ लाक्षादि धूम-लाम्ब, भिलावा, विरोजा, सफेद अपराजिता, अर्जुन की छाल, फल-फूल, वायविडङ्ग, सफेद, राल, गुग्गुलु । सम भाग मे खरल कर रख ले। इमको आग में जलाकर कमरे को बन्द कर इसका धुवाँ देने से घर, गय्या ओर वस्त्र के कीड़े नष्ट हो जाते है। साँप, चूहे, मच्छर, मकडी, खटमल आदि पराश्रयी नए हो जाते है। र विडङ्ग तल-वायविडङ्ग, गंधक, मन गिला। इनका सम भाग में गृहीत कल्क १ पाव । मूच्छित कटु तैल १ सेर । गोमूत्र ४ सेर। कडाही में
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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