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________________ ३१२ भिपकर्म-सिद्धि ३ निदानोक्त भावो का परिवजन-कृमि के उत्पन्न करनेवाले कारणो का सर्वथा परिवर्जन करना । क्षीर, दधि, गुड़, तिल, मत्स्य, आनूप माम, पायम, पिष्टान्न, कुसुम्भ स्नेह प्रभृति उत्पादक कारणो को छोड देना चाहिए। यह एक सामान्य उपक्रम है । विशेप उपक्रमो की दृष्टि से विचार किया जावे तो पुरीपज कृमियो मे वस्ति और विरेचन के द्वारा उपचार, कफज कृमियो में गिरोविरेचन ( नस्य ), वमन और शमन की चिकित्सा, रकज कृमियो मे उनके विनाग के लिये कुष्टाधिकार में बतलाये गये उपचार रक्तशोधक योग तथा बाह्य कृमियो में यूका, लिक्षा आदि को नष्ट करने के लिये लेप, प्रक्षालन ( सेक) एव यभ्यंगादि का प्रयोग कुगल चिकित्मक को करना चाहिये ।' सेपज-कृमिघ्न औपवियां सामान्यतया सभी कृमियो पर कार्य करती है परन्तु कुछ विशिष्ट कृमिघ्न भी होती है उनका यथास्थान वर्णन किया जावेगा। कृमिघ्न भेपजोका प्रयोग गुडपूर्वा---गुड के साथ करने का विधान है । इसका उद्देश्य यह होता है कि कृमियों गडप्रिय या मधुरप्रिय होती है। गुड के उदर में पहुचने पर मात्रस्य कृमि मामाशयान्त्र के विविध स्थानो ( आत्र की अत स्थ भित्तियो ) से निकल कर गुडभक्षण की स्पृहा से उस स्थान पर जहाँ गुड पहुचा है, एकत्रित हो जाती है। उसमें तिक्त, उष्ण, क्षारीय और उष्ण गोपवियो के सम्पर्क मे आकर या तो वे मर जाती है अथवा मूच्छित हो जाती है और फिर एक रेचन दे देने से वे आन्त्र से धुलकर बाहर निकल जाती है। अस्तु प्राय गुड के साथ भेपो का प्रयोग करने का उपदेश शास्त्रों में पाया जाता है । १. पारसीकयमानी-क्रिमिकोष्ठ वाले रोगी को प्रात काल मे पहले १ तोला गुड खिलाकर फिर पारसीकयमानी (खुरासानी अजवायन ) का चूर्ण ३ माशे खिलावे । चूर्ण को खिलाकर वासी पानी पीने को दे। तो कृमिया मल के साथ बाहर निकल जाती है। यह योग सभी कृमियो विशेपत अंकुशमुख कृमियो में लाभप्रद रहता है। माधुनिक युग में पारसीकयमानी सत्त्व (थायमाल नाम से Thymol ) पाया जाता है । अकुगमुख कृमि मे यह औपधि विगेप लाभप्रद (Specific) १. 'अपकर्पणमेवादी कृमीणा भेपजं स्मृतम् । ततो विघात. प्रकृतेनिदानस्य च वर्जनम् । ( चर वि ८) २ पुरीपजेपु सुतरा दद्यादस्तिविरेचने । गिरोविरेकं वमन गमनं कफजन्मसु ।। रक्तजाना प्रतीकार कुर्यात् कुष्ठचिकित्सया । वाह्य पु लेपसेकादीन् विदध्यात् कुगलो भिषक् ।।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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