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________________ ( ३२ ) प्रकृत्ति, देश, काल, साम्त्य, ऋतु, बलाबल और मात्रा आदि की सम्यकतया विचार कर चिकित्सा की योजना सम्यक रीति से करता है। ___ 'तिष्ठत्युपरि युक्तिनः' 'युक्तिश्च योजना या तु युज्यते ।' यह युक्ति या हिकमत की दक्षता आप्तोपदेश तथा प्रत्यक्ष कर्माभ्याम से प्राप्त होती है। भिपक कर्म-कर्म का स्वरूप क्रिया है । द्रव्यों की गरीर पर जोत्रमनादिक क्रिया होती है उसे कर्म कहते है। आयुर्वेद मे अदृष्ट के लिये भी कर्म शब्द का प्रयोग हुआ है। इस लिये उसकी व्यावृत्ति के लिये यह लिखा गया है कि चिकित्सा में प्रयुज्यमान क्रिया को ही कर्म कहा जाता है । चेतन प्रयत्न से उत्पन्न चेष्टा व्यापार को भी कर्म कहते हैं। इसी का नाम प्रवृत्ति, क्रिया, कर्म, यत्न तथा कार्य-समारंभ है। वैगेषिक दर्शन से उत्क्षेपण-अपक्षेपण आदि व्यापारों को कर्म कहा गया है। वहाँ पर संयोग, विभाग और वेग कर्मजन्य बताया गया है। द्रव्यगुण शास्त्र में कर्म शब्द से द्रव्यों के वमनादि कर्म अभिप्रेत है। सुश्रुत ने भी वमन, विरेचन, दीपन, संग्रह आदि को औपध कर्म कहा है। ___ आचार्य चरक ने वडी सुन्दर व्याख्या कर्म शब्द की की है। 'जो सयोग और वियोग मे स्वतंत्र (अनपेक्ष) कारण हो और द्रव्य मे समवाय सबन्ध से रहता हो (द्रव्याश्रित ) और फलावाप्ति के द्वारा लक्षित होता हो उसे कर्म कहते है।' 'सयोगे च विभागे च कारणं द्रव्यमाश्रितम | कर्त्तव्यस्य क्रियाकर्म कर्म नान्यदपेक्षते । जिस प्रकार लोक मे कोई सयोग-विभाग विना कर्म के नहीं होता उसी प्रकार शरीर संयोग-विभाग (परिवर्तन) विना कर्म के नहीं होता है। शरीर में इस प्रकार परिवर्तन या परिणाम उत्पन्न करते द्रव्यगत पदार्थ को कर्म कहते हैं । यह कर्म आपाततः अदृष्ट है, यह दिखलाई नहीं पडता केवल फल या परिणाम के द्वारा ही जाना जा सकता है। चरक के इस मत का समर्थन करते हुये पातंजल महाभाष्य की भी उक्ति मिलती है . "क्रिया नामेयमत्या परिदृष्टा न शक्या पिण्डीभूता निदर्शयितुम् ।' कर्म के इन शास्त्रीय लक्षणों के पश्चात् अव चिकित्सा कर्म या भिपक् कर्म के लक्षणों का आख्यान किया जा रहा है। ___ शरीर में धातुवों की स्थिति समान रहे उनमें विषमता न आने पावे, क्वचित् विपमता हो जाये तो पुन उसको समावस्था में लाने की क्रिया ही भिपक कर्म है। दूसरे शब्दों में स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को ठीक वनाये
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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