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________________ ( ३१ ) वह उद्भुत । इस प्रकार हिमालय का जो ग्राम्य वेश है वह मद्रास के लिए विदेशी | इसी तरह के अन्य भी उदाहरण दिए जा सकते है । ऐसी स्थिति मे कौन-सा वेग वैद्यों का गणवेश ( uniform ) हो, यह भी एक समस्या है । आचार्य सुश्रुत ने इसका वटा सुन्दर समाधान किया है । उन्होंने वैद्य के सौग्य और अद्भुत वेश की प्रशंसा की है । जो भी वेश जिस देश में अनुद्धत स्वरूप का हो उसे वैद्य को धारण करना चाहिए । 'छत्रेण, दण्डेन, सोपानत्केन, अनुद्धतवेशेन त्वया विशिखानुप्रवेष्टव्या ।' वैद्य को सम्पूर्ण साधन और सामग्री से सुसज होना गुण माना गया है । आज का वैद्या निदान के कुछ सीमित साधनों तक ही अवरुद्ध नहीं है और उसे होना भी नहीं चाहिए । बल्कि रोग के निदान के साथ ही चिकित्सा के विभिन्न साधन और सामग्री का सम्भार उसके समक्ष रहना चाहिए। जिस प्रकार बाह्य नाधनों में हमें आराम के भिन्न-भिन्न आविष्कृतनये उपायों की आवश्यकता पडती है और स्वीकार करते हुए हिचक्त नही होती उसी प्रकार निदान और चिकित्सा के विभिन्न आविष्कृत साधन-सामग्री से सुसज्ज चिकित्सक का होना भी नितान्त आवश्यक है । यही कारण है कि आज का वैद्य इन नवीन साधनों से सम्पन्न पाया जाता 1 पूर्ण चिकित्सक यदि निष्पक्ष दृष्टि से विचार किया जाय तो आधुनिक युग के निकले हुए आयुर्वेद विद्यालयों के स्नातक चिकित्सक की पूर्ण इकाई है, (Complete unit) क्योंकि आधुनिक विज्ञान का ज्ञांता कितना ही क्यों न हो जब तक उसको प्राचीन संस्कृत साहित्य में निहित ज्ञानराशि का सन्देश प्राप्त नही हो जाता वह अपूर्ण रहता है । प्राचीन और नवीन ज्ञान से युक्त व्यक्ति ही पूर्ण चिकित्सक ( Complete physician ) का गौरव प्राप्त कर सकता है और राष्ट्र के लिए ऐसे ही पूर्ण चिकित्सकों की आवश्यकता है । इन उभयज्ञ चिकित्सकों से जनता की पूरी सेवा सम्भव है । I 'भिपक चिकित्साङ्गानाम् ' - चिकित्सा कर्म में प्रयुक्त होने वाले जितने भी साधनोपसाधन हैं, उनमें सर्वाधिक महत्त्व चिकित्सक का है । शल्य चिकित्सा में सब प्रकार के यत्रोपयंत्र, शस्त्रानुरास्त्र से सुसज्ज चिकित्सालय या आगार के रहने पर भी यदि चिकित्सक की कुशलता नही प्राप्त हो शल्य कर्म मे सफलता नहीं मिलती है । कायचिकित्सा के क्षेत्र मे भी यही स्थिति है । चिकित्सक या भिषक् का सबसे बडा गुण योजक होना माना गया है । 'योगो वैद्यगुणानाम्' सबसे उत्तम भिषक् वह है जो रोग और रोगी की
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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