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________________ भिपकर्म-सिद्धि अपथ्य - विरुद्ध, असात्म्य, विवधकारक, गुरु भोजनो का जैसे -नया अन्न, हलुवा, पूडी, पूआ, उडद और चने की दाल, आलू, अरुई प्रभृति जड़ के शाक, गरिष्ठ मास और मत्स्य, वासी मास आदि दुर्जर पदार्थ अग्नि की मंदता रहने पर अपथ्य होते हैं, परन्तु तीक्ष्णाग्निमे इम प्रकार के पदार्थ पथ्य रूप मे निर्दिष्ट है | 0 दसवाँ अध्याय कृमिरोग-प्रतिपेध विपय प्रवेश - वैकारिक अवस्था में पाई जाने वाली (Pathological ) शरीरगत क्रिमियो की उपजातियो का उल्लेख वैद्यक ग्रंथों में पाया जाता है 'विशति कृमिजातय' । 'ये वीन उपजातियाँ विविध श्लेष्मवर्धक आहार-विहार अथवा अपथ्यो के सेवन मे उत्पन्न (Acqwired) होती है । इनके अलावे बहुत सी कृमियों की उपजातियाँ सहज ( Congenital ) भी पाई जाती है | निदान या कारण की दृष्टि से विचार किया ( Chnicaly ) जाय तो इनको चार प्रकारो में वर्णन करना ही पर्याप्त होता है । १. पुरीपज, २. श्लेष्मज ३ शोणितज ४ मलज | ३०६ मलज - मल के वाह्य तथा आभ्यतर दो भेद से दो प्रकार की कृमियाँ हो जाती है । इन में बाह्य मल में पैदा होने वाली कृमियों को ही मलज कृमि कहा जाता है । वाह्य मल में कृमियों के उत्पन्न होने का मूल हेतु स्वच्छता का अभाव या सफाई का न रखना है। स्वच्छता के अभाव मे केश, दाढी, त्वचा के लोम, ( पथ्म Eyelashes ) तथा वस्त्र में अणु से लेकर तिल के परिमाण तक के बिना पैर के, बहुत पैर के - यूका (जू आ), लिक्षा (लीस), पिपीलिका ( ढोल ), चिल्लर यादि नामो से अभिहित बहुत प्रकार की कृमियाँ पैदा हो सकती है | इनकी वजह से खुजली, द्रु, पामा, गीतपित्त, Patches ), फोडे, फुन्सी आदि उत्पन्न हो जाते हैं उत्पन्न करने वाले कारणो को दूर करना, सफाई के तथा पैदा हुई कृमियों को मारना या पकड़-पकड़ कर उपचार है | मज कृमियों में Pediculosis Ringworm आदि गृहीत हैं । गदगी से पसीने, नख, त्वचा के मैल या मल मे पैदा होने ने मलज कहलाती है । कोठ ( urticarial । इनकी चिकित्सा मे मल शोणितज या रक्तज - रक्तवह संस्थान में गिरा, वमनी तथा रसवाहिनियो ( Iymphatics ) मे पाई जाने वाली अत्यन्त सूक्ष्म, चर्मचक्षु से यदृश्य ( परन्तु अणुवीक्षण दर्शनयत्र से दृश्य ) वृत्ताकार और विना पैर की ये द्वारा मल को दूर करना खीच कर दूर करना हो Acarus Scabies,
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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