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________________ ३०४ भिपकर्म-सिद्धि छाल, पियावामा के जड की छाल सव सम भाग में लेकर कपडछन चूर्ण कर अदरक के रस से घोटकर चने के वरावर गोलियाँ बनावे। एक-एक घटे पर इसका प्रयोग विसूचिका मे वडा चमत्कारिक प्रभाव दिखलाता है। अंजन प्रयोग-विसूचिका एक अत्यन्त तीन रोग है---इसमे वमन इतना तीन होता है, कि मीपविका कोई प्रभाव ही नही दिखलाई पडता है । जो औषधि दी जाती है वमन हो जाता है, पानी पिया जाता है वह भी के से निकल जाया करता है। अस्तु, बहुत प्रकार के योगो की कल्पनायें की गई है । औपधि के के द्वारा निकलजाने पर पुन मीपवि को देते रहना चाहिये । एक मोपधि योग अनुकूल नही पड रहा है तो दूसरा योग दिया जा सकता है । कई बार अजन (नत्र मे औपधि) लगाने से अद्भुत लाभ देखा जाता है। वमन और अतिसार की शृखला टूट जाती है । यहाँ पर दो पाठ दिये जा रहे हैं—किमी एक का प्रयोग करे । व्योपादि गुटिकाञ्जन-त्रिकटु, करज के फलकी गुद्दो, हरिद्रा, विजारे नीबू की जड़ को पीस कर गोली बनाकर छाया में शुष्क करके रखे । अंजन गुडिका-महुए का फूल, अपामार्गवीज, अपराजिता के मूल, हल्दी मार त्रिकटु । गोली बनाकर रखले । गोली पत्थर पर पानी से घिस कर नेत्र में लगावे । इस यजन का प्रभाव स्वतत्र नाडी मण्डलपर होकर मामागयात्रकी क्षुब्धता गान्त हो ( Irritation ) जाती है और फलतः वमन तथा अतिसार बद हो जाता है । विसूचिका मे वमन तया अतिसार की अधिकता से द्रवधातु का नाश होता चलता है। द्रवनाग (Dehydration )-परिणामस्वरूप रोगी में उदर मे दाह, तृपाविक्य, खल्लो (हाथ-पैर में टांस या ऐंटन), मूत्रावसाद (Suppression of urine ), नाडी और हृदय की दुर्वलता, त्वचाकी रूक्षता, नेत्रो की भीतर की योर घसकर अन्त. प्रविष्ट हो जाना-ये उपद्रव उत्पन्न हो जाते है । यह अवस्था घातक होती है । इसमें गिरामार्ग द्वारा लवण जल ( Saline Infusion) एक मात्र उपाय गेप रहता है। इसका सिद्धान्त यह है कि शरीर से जिन धातुओ का अत्यधिक सरण हो गया है उनकी पत्ति करना। द्रवनाश मे जल, लवण, क्षार की कमी हो जाती है और इन्ही द्रव्यो के मत भरण शिराद्वारा करने से स्थिति सुधरती है । क्वचित् निम्न लिखित योगो से भी लाभ होता है। विसूचीविध्वंसन रस-शुद्ध टंकण, सुवर्णमाक्षिक भस्म, शुठीचूर्ण, शुद्ध पारद, गुद्ध गधक, शुद्ध कृष्ण सर्पविप तथा हिंगुल सव समभाग । पहले पारद और गधक की कज्जली बनाकर उसमें शेप द्रव्यो के सूदम चूर्णों को मिलाकर जम्बोरीनीबू के रस में घोटकर मर्पप के बरावर की गोलियां वनाले । मृत सजीवनी सुरा या ब्राण्डी के साथ इसकी एक-एक गोली का प्रयोग करे तो यह
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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