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________________ चतुर्थ खण्ड : सप्तम अध्याय २७१ तपा महाराज नृपवल्लभ रम ( स्वर्ण एव रजत युक्त) भैपज्यरत्नावली मे पाये जाते है । ऊपर वाला पाठ एक उत्तम अल्पव्यय साध्य योग है। रसेन्द्र चूर्ण-रससिन्दूर, वशलोचन, मुक्ताभस्म, स्वर्णभस्म तथा अहिफेन पा योगिक । मात्रा-४ रत्ती एक वार रात्रि में सोते समय दूध से। अग्निसतुरस-कपर्द भस्म १ तोला, शस भस्म १ तोला सम प्रमाण पारदमांचक ने बनी पज्जली १ तो, मरिच चूर्ण ३ तोले । सवको निम्बू के रस मे परल में रस भावितकर सुखाकर शीशी मे रख ले। मात्रा-१ माशे। अनुपानपिप्पली चूर्ण तया वृत। पर्पटी के योग-रस पर्पटी-द्रव्य ओर निर्माण विधि-हिंगुल से निकाले पारद को कमग. जयन्ती, एरण्ड और मकोय के स्वरस से एक दिन मर्दन करके गर्म पाल ने बोले । गंधक का मोटा चूर्ण करके उसको सात दिनो तक भृगराज फेन्बरन में भिगोकर रखे । फिर उसको सुखाकर, भीतर से घृतलिप्त लाह की उडाही में रख कर भाग पर चढाकर पिघलावे । फिर इस पिघले गधक को छाने । छानने के लिये एक ऐसा घट ले जिसमे भृगराज स्वरस आधा भरा हो और उसके मटके उपर मजवन कपडा बंधा हो । छानने से गवक घडे मे भ गराज मे जाकर बैठ जायेगा फिन इस गधक को निकाल कर गर्म जल से धोकर सुखा ले। इस प्रकार ने गुद्ध किये पारद और गन्धक का सम भाग लेकर खरल में मर्दन करके कज्जली बनावे । कज्जली बनाने में तब तक मर्दन करे जव तक पारद के कण (चन्तिका ) अहश्य न हो जाय। पर्पटी बनाने के लिये इस कज्जलो को अब एक बडे लोहे के कलछी मे लेकर अग्नि पर रख पिघलावे। द्रव्य को लोहे के दंड से चलाता रहे। जब कज्जली द्रव हो जाय तव उसको जमीन पर गोवर बिछाकर उसके ऊपर केले का पत्ता बिछाकर उस पर ढाल दे। ढालने के साथ दी दसरे केले के पत्ते से उसको ढके और दवा दे। जब पर्पटी ठडी हो जाय तो सी में भरकर रख दे। सेवन कराने के समय पर्पटी का महीन चूर्ण बनाकर प्रयोग करना चाहिये। विविध पर्पटिया-इसी विधि से स्वर्णपर्पटी, (सुवर्ण भस्म की अतिरिक्त योग से ), लौह पर्पटी (लोह भस्म का अधिक योग) करके मण्डूर पर्पटी ( मण्डर भस्म के विशेष योग से), गमन पर्पटी (अभ्रक भस्म कज्जली के अतिरिक्त मिलाकर), ताम्र पर्पटी ( ताम्र भस्म का अधिक योग करके), पचामृत पर्पटी (लौह भस्म, अभ्रभस्म, ताम्र भस्मो का फज्जलो के अतिरिक्त योग से), विजय पर्पटी ( रजत. सवर्ण, मुक्तापिष्टि, वैक्रान्त, ताम्र, अभ्र, भस्म-यदि प्राप्य हो तो हीरक भस्म भी इन द्रव्यो के अधिक योग से निर्मित ) नामक विविध पर्पटियां भी बनती है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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