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________________ चतुर्थ खण्ड : सप्तम अध्याय २६७ सप्ताह के अनन्तर किया जा सकता है । ऋतु के अनुसार कच्चे खरबूजे का शाक भी लाभ, प्रद होता है। यदि पर्पटी या कज्जली का योग न चल रहा हो तो केले के शाग का उपयोग किया जा सकता है अन्यथा नही करना ही उत्तम रहता है। शुद्ध देशी घृत का प्रयोग भोजन मे मिलाकर किया जा सकता है क्योकि अल्पमात्रा में दिया गया घी अग्नि का वर्धक होता है। पीने के लिये खोलाकर ठंडा किया हुआ जल, अथवा सौफ का अर्क मिल सके तो देना उत्तम रहता है। नारिकेल जल तृषा मे देना प्रशस्त है। ग्रहणी-चिकित्सा-मे प्रयुक्त होने वाले योग-सामान्यतया अधोलिखित योगो मे से किसी एक का प्रयोग योग्य अनुपान से करने से और ऊपर में कथित पथ्य के सेवन से रोग अच्छा हो जाता है। १. कपित्थाष्टक चूर्ण-यमानी, पिप्पली मूल, दालचीनी, सूक्ष्मैला, तेजपत्र नागकेसर, शु ठी, मरिच, चित्रकमूल, सुगधवाला, धनिया, सौवर्चल, लवण मे से प्रत्येक एक तोला तथा वृक्षाल, धातकी पुष्प, पिप्पली, विल्व फल को मज्जा, अनारदाना और तिन्दुक फल मे से प्रत्येक को तोला, मिश्री ६ तोला और कपित्थफल की मज्जा ८ तोले । मात्रा २ से ४ माशे । अनुपान-म? के साथ । २ वृद्ध गंगाधर चूर्ण-गगाधर चूर्ण नाम से कई पाठ भेपज्यरत्नावली मे सगृहीत है। जैसे स्वल्प गगाधर चूर्ण, मध्यम गगाधर चूर्ण (अहिफेन युक्त), मध्यम गगाधर चूर्ण तथा वृद्ध गगाधर चूर्ण । इनमे वृद्ध गगाधर चूर्ण का प्रयोग अधिकतर प्रचलित है। योग इस प्रकार है-नागरमोथा, सोना पाठा, सोठ, घाय के फल, लोध्र, नेत्रवाला, विल्वमज्जा, मोचरस, पाठा, इन्द्रयव, कुटज की छाल, आम की गुठली, मजिष्ठा और अतीस इन द्रव्यो का समपरिमाण मे बना चूर्ण । मात्रा-१ से ३ माशे, अनुपान-तण्डुलोदक और मधु । लवङ्गाद्य चूर्णम्-लवङ्गाद्य चूर्ण नाम से कई पाठ भैपज्यरत्नावली मे सगृहीत है। जैसे स्वल्प लवड्गाद्य, वृहद् लवङ्गाद्य तथा महत् लवङ्गाद्य ( अभ्रक लोड और कज्जली वुक्त ) इन में स्वल्प लवड्जाद्य विशुद्ध काष्ठीषधि योग उत्तम है । इसमे निम्नलिखित घटक पाये जाते है। इसका दुर्बल रोगियो मे अम्लपित्त एव ग्रहणी उभय प्रकार के रोगियो मे व्यवहार किया जा सकता है। लवङ्ग, अतीस, मुस्तक, वाल विल्व मज्जा, पाठा, मोचरस, श्वेत जीरक, धातकीपुष्प, लोध्र, इ द्रयव, नेत्रवाला, धान्यक, राल, काकडासीगी, छोटी पिप्पली, श ठी, मजिष्ठा, यवक्षार, सैन्धव, रसोत, समपरिमाण मे गृहीत चूर्ण । मात्रा-३मागे। अनुपान-जल।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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