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________________ २३४ भिपकर्म-सिद्धि विषमज्वर से एकोपधिप्रयोग:-१. कालाजीरा और गुडका मेवन । २ लहसुन की चटनी बनाकर उसको तिल तेल पकाकर सेवन, दीर्घकालीन वात रोग तथा विषम ज्वर में मेवन । ३. त्रिफला कपाय और गुड़की चागनी बनाकर सेवन या केवल त्रिफला चूर्ण और गुड का सेवन । ४. हरीतकी चूर्ण और मधु का सेवन । ५ लहसुन की चटनी एव घी का सेवन । ६ वर्धमान पिप्पली का सेवन विगेपत जीर्ण विषम ज्वर मे जब यकृत् और प्लीहा की वृद्धि हो। इसमे एक, दो या तीन पिप्पली को दूध के साथ पीस कर सेवन प्रारंभ करना होता है, फिर उसी क्रम से प्रति एक, दो या तीन की वृद्धि करते हुए ग्यारह या इक्कीस दिन तक चलाकर फिर क्रमश उसी क्रम से कम करते हुए प्रारम्भिक मात्रा पर रोक देना चाहिये । रोगी के वल और काल का विचार करके मात्रा का प्रारभ एक, दो या तीन से करना चाहिये। ७ पटपल सपि का सेवन । ८ उष्ण दूध में तिल तेल, घी, विदारीक्द तथा गन्ने का रस मिलाकर सेवन ! ९ छोटीपीपल, मिश्री, घी, मधुको गर्म करके ठंडा किये दूध में मिलाकर मथकर (पंचसार ) का सेवन । १० शेफाली स्वरस और मधु का सेवन । ११ नाई वनस्पति का कपाय सेवन । १२ निम्ब पत्र ५ पीसकर नित्य लेना या नीम की छाल का कपाय : छटाँक का सेवन । १३ तुलसी का कपाय ! इसमें कृष्ण तुलसी अधिक श्रेष्ठ है। १४ द्रोणपुष्पी का कपाय या स्वरस । १५ चम्पा के फूल का रस । विपम ज्वर के वेग को रोकने की औपधियॉ-विषम ज्वरो में ज्वर के पूर्व में जाडा या हल्की सिहरन होती है-पश्चात् तीव्र ज्वर हो जाता है । वेग या दौरे रोग मे प्रायः पाये जाते है । वेगो का काल भी नियत सा रहता है कभी अनिश्चित भी होता है। ज्वर के दौरा या वेग आने के पूर्व कई औपधियाँ है, जिनका प्रयोग करने से वेग रुक जाता है। दो-तीन बार ऐसे वेगो को रोक देने से प्राय ज्वर मे लाभ भी हो जाता है। कुछ एक ऐसे भेपजो का नाम नीचे दिया जा रहा है. १. शुद्ध स्फटिका-(लाल फिटकिरी हो तो अधिक उत्तम ) कच्ची फिटकिरी को गर्म तवे पर भूनकर खील बना ले पश्चात् उसका महीन चूर्ण कर ले । प्रात काल में ज्वर के वेग के पूर्व १ मागा की मात्रा में बताने मे रखकर रोगी को सिलादे । ज्वर प्राय नही आता है। २ मार्जारविष्टा का दूध के १. भवति विपमहन्त्री चेतकी क्षौद्रयुक्ता । नान्यानि मान्यानि रसौपधानि परन्तु कान्ते न रसोनाल्कात् । तैलेन युक्तो पर प्रयोगो महासमोरे विपमज्वरे च । गुटप्रगाटा त्रिफला पिवेता विपमादित । मधुना सर्वज्वरनुच्छेफालीदलजो रस ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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