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________________ चतुर्थ खण्ड · तृतीय अध्याय २३३ चिकित्सा की व्यवस्था करनी चाहिये । वात की प्रधानता होने पर घृतपान और अनुवासन वस्ति का प्रयोग, पित्त की प्रधानता होने पर औपधिसिद्ध दूध या घी का प्रयोग तिक्त और शीत गुण भूयिष्ठ औपधियो का प्रयोग तथा कफ की प्रधानता होने पर वमन, लघन, पाचन एव उष्णवीर्य भेपज का प्रयोग करना चाहिये। २ विषम ज्वर मे ऊर्ध्व तथा अधोमार्ग से शोधन प्रशस्त है अर्थात् रोगी को वमन तथा विरेचन करावे । ३ स्निग्ध एव उष्ण भोजन तथा आहार-विहार की व्यवस्था करनी चाहिये । मधुकादि कपाय-मधुयष्टि, लाल चदन, मुस्तक, आमलकी, धान्यक, सस, गुडूची और पटोल का पाय मधु और चीनी मिलाकर पीना। शिशिरादिकपाय. (वैद्यजीवन)। सशिशिरः सघनः समहौपधः सनलदः सकणः सपयोधरः। समघुशकर एप कपायको जयति बालमृगाक्षि तृतीयकम् ॥ संततादि विपम ज्वरो मे पच कपाय-१ इन्द्र जौ, पटोल, कुटकी, तीनो का सममात्रा में सम्मिलित कषाय सतत ज्वर मे लाभप्रद । २ पटोलपत्र, अनन्त मूल, मुस्तक, कुटकी और पाठा इनका सममात्रा में सम्मिलित प्रयोग सततक ज्वर मे ३ नीम की छाल, पटोल पत्र, मुनक्का, हरीतकी, विभीतक, आँवला, मोथा तथा इन्द्र जी इनका सम्मिलित सममात्रा में प्रयोग अन्येद्य ष्क ज्वर मे लाभप्रद ४ चिरायता, गुडूची, लाल चदन और सोठ इन चारो का सममात्रा मे ग्रहण कर सम्मिलित प्रयोग तृतीयक ज्वर मे ! ५ गुडूची, आंवला और मोथा इन तीनो का सममात्रा मे गृहीत प्रयोग चातुर्थक ज्वर मे लाभप्रद होता है। क्वाथ के लिये औपधिद्रव्य २ नोले लेकर ३२ तोले जल मे पकाकर ८ तोले शेष रहने पर उतारे और मध मिला कर पिलाना चाहिये । विषम ज्वर मे प्रयुक्त होने वाले ये पच कपाय है जो बडे प्रसिद्ध और प्राय सभी वैद्यक ग्रथो मे इनका पाठ पाया जाता है । १. विपमेष्वपि कर्त्तव्यमूवं चाधश्च शोधनम् । स्निग्योष्णरन्नपानश्च शमये द्विषमज्वरम । वातप्रधान सपिभि वेस्तिभि सानुवान । विरेचन च पयसा सपिपा सकृतेन च ॥ विपम च तिक्तशीतज्वर पित्तोत्तर जयेत् । वमन पाचन रूक्षमन्नपानञ्च लवनम् । कपायोष्णञ्च विपमे ज्वरे शस्त कफोत्तरे । २ कालिद्धक पटोलस्य पत्र कटुकरोहिणी । पटोल शारिवा मुस्त पाठा कटुकरोहिणी । निम्ब पटोल मृट्टीका त्रिफला मुस्तवत्सकी। किराततिक्तममता चन्दन विश्वभेषजम् ॥ गुडूच्यामलक मुस्तमर्धश्लोकसमापना ॥ कपाया शमयन्त्याश पञ्च पञ्चविधान् ज्वरान् ॥ सततं सततान्येा स्तृतीयकचतुर्थकान् ॥ (च. चि ३)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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