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________________ २०४ · भिपक्रम-सिद्धि क्षीण होने से गरीर के भीतर की अग्नि वढ जाने से पाचक्राग्नि प्रवल हो जाती है। ऐसे समय में भोजन नहीं करने से प्रदीप्त अग्नि रस-रक्तादि धातुओ को जलाती है, जिससे वलक्षय होता है ।"१ बस्तु ज्वरित को समय से लघु भोजन देना चाहिये। इस प्रकार के लघु भोजन या हत्के हितप्रद आहार कोने से है इसका एककग विवेचन नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है। पेया-सम्यक् प्रकार के लधन के लक्षण उत्पन्न हो जाने पर रोगी की चिकित्सा पेयादि से करे । इसमे पेया आदि को अपनी-अपनी औपधियो से सिद्ध करके देवे । प्रयम यूप या मण्ड दे, पश्चात् पेया, यवागू मादि दे। ज्वर में प्रथम छै दिनो तक अथवा जब तक ज्वर मृदु न हो जाय पेया का ही प्रयोग करना चाहिये। पेया के बारे में चरक में लिखा है कि ये पेयादि मोपवियो के सयोग से तथा लघु होने ने अग्नि के दीप्त करने वाले होते है। इनके प्रयोग से वात-मूत्र एवं पुरीप का सरण होता रहता है, दोपो का अनुलोमन होता चलता है, इनके द्रव एवं उष्ण होने से रोगी का हल्का स्वेदन होता चलता है, तृपा गान्त हो जाती है । आहार का गुण होने से रोगी का वल नही टूटने पाता है, शरीर हत्का रहता है और ज्वर में सात्म्य होने से ज्वरनागक भी.होते है। अस्तु पेया के द्वारा ज्वर के प्रारंभ में चिकित्सा करनी चाहिये ।२ पेयावो में सबसे प्रथम धान्य लाज (खोलो) को वनी पेया दे। इस पेया में सोंठ, धनिया, पिप्पली और सोठ को प्रक्षेप डालकर देवे। यह लाजपेया जल्दी । १ वरिनो हितमश्नीयाद् यद्यप्यस्यारुचिर्भवेत् ! - - अन्नकाले ह्यभुज्ञान. क्षीयते म्रियतेऽपि वा ॥ - ज्वरित ज्वरमुक्तं वा दिनान्ते भोजयेल्लघु । श्लेष्मक्षये विवृद्धोमा वलवाननलस्तदा ।। ( सु चि.) २. मुस्तपर्पटकोशोरचन्दनोदीच्यनागर । शृतगीत जल देयं पिपासावरगान्तये ।। यदप्मु गृतगीतामु पडङ्गादि प्रयुज्यते । कर्पमात्रं ततो द्रव्यं साधयेत् प्रास्थिकेऽम्भनि । अर्वशृतं प्रयोक्तव्यं पाने पेयादिमविवौ ॥ ३ युक्तं लधित लिङ्गैस्तु त पेयाभित्पाचरेत् । यथास्त्रीपवसिद्धाभिर्मण्डपूर्वाभिरादित. ।। पडहें वा मृदुत्व वा ज्वरो यावदवाप्नुयात् । तस्याग्निर्दीप्यते ताभि समिद्भिरिव पावकः ।। (वा चि १ )। ताश्च भेपजमयोगाल्लघुत्वाच्चाग्निदीपना.। वातमूत्रपुरीपाणा दोपाणा चानुलोमना ॥ स्वेदनाय द्रवोष्णत्वाद् द्रवत्वात् तृटप्रशान्तये । आहारभावात प्राणाय मरत्वाल्लाववाय च । ज्वरत्नो ज्वरसात्म्यत्वात् तस्मात्पेयाभिरादित. ज्वरानुपचरेद्धीमान् । (च चि ३)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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