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________________ चतुर्थ खण्ड : प्रथम अध्याय २०१ अस्तु प्यास लगने पर थोडा-थोडा गर्भ पानी वात-कफ ज्वर के रोगियो को पीने के लिये देना चाहिये । यह गर्म जल कफ का विलयन करके प्यास को शीघ्र नष्ट करता है। अग्नि को प्रवल करता और स्रोतो को मृदु एव विशोधन कर देता है । लीन हुए स्वेद-वायु- मल-मूत्र का अनुलोमन करता है । निद्रा-जडता एव अरुचि को नष्ट करता है, बल को सहारा देता है। इसके विपरीत शीतल जल दोपसमूह को बढाता है। यह उष्ण जल कई प्रकार का बनाया जा सकता है। जैसे, क्वथित जल पानी खौल जाय और उतार कर रखकर ठडा करले और पीने को दे अथवा लवङ्ग, वायविडङ्ग, धान्यक मे किसी एक द्रव्य को तीन से पाँच दाना डालकर चौला ले और टडा होने पर पीने को दे। कई वैद्य-परम्पराओ मे अर्धावशिष्ट चतुर्थाशावशिष्ट, अष्टमाशावशिष्ट या पोडगाशावशिष्ट क्वथित जल देने की भी विधि पाई जाती है। यह जल बहुत हल्का, सुपाच्य एव दोषो का पाचक और मबल हो जाता है। ऐसा जल दीपन, पाचन, ज्वरघ्न, स्रोतसो का शोधक, वत्य, रुचि एव स्वेद का वर्द्धक और ज्वरित को कल्याणप्रद होता है। उष्ण जल मे इतने गुण होने पर भी एकान्तत पित्त ज्वर मे, बढे पित्त मे, दाह, मूर्छा एव अतिसार युक्त ज्वरो मे, विष एव मद्य से उत्पन्न ज्वरो मे, ग्रीष्म ऋतु मे, रक्तपित्त एव उर:क्षत के रोगियो मे उसका निषेध पाया जाता है। इन ज्वर के रोगियो मे शीतल जल देना चाहिये । यदि गर्म जल देना भी हो तो उसको गीतवीर्य औपधियो से जैसे, पित्तपापडा, उशीर, चदन' आदि से सस्कारित वर ठडा करके देना चाहिये। गर्म करके ठडा किये जल को शृत शीत कहते है। इस प्रकार के औषधियो से सस्कारित और ठंडा किये जल को प्यास एव ज्वर को शान्ति के लिये पीने को देना चाहिए। इसके अतिरिक्त ज्वरकालमे मद्य भी पिलाया जा सकता है। जिन देशो में जल पीनेकी प्रथा नहीं है, अथवा उन व्यक्तियो मे जिनमे जल के पीने का अभ्यास नहीं है अर्थात् मद्यसात्म्य देश या व्यक्ति हो तो उनमे दोप और शरीर के वल के अनुरूप मद्य पिलाने की व्यवस्था करनी चाहिये। १ तृष्यते सलिल चोष्ण दद्याद् वातकफे ज्वरे । तत्कफ विलय नीत्वा तृष्णामाशु निवर्तयेत् ॥ उदीर्य चाग्नि स्रोतासि मृदूकृत्य विशोधयेत् । लीनपित्तानिलस्वेदशकृन्मूत्रानुलोमनम् ॥ निद्राजाड्यारुचिहर प्राणानामवलम्बनम् । विपरीतमत शीतं दोपसघातवर्धनम् ।। ( वा. चि १) २ दोपनं, पाचन चैव ज्वरघ्नमुभयञ्च तत् । स्रोतसा शोधन बल्य रुचिस्वेदप्रद शिवम् ।। (भै २ )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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