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________________ भिपक्कम-सिद्धि औपधि की योजना करे। विद्या-तर्क-बुद्धि-विज्ञान-स्मरणगक्ति-तत्परता-क्रियागीलता ये छ गुण जिस वैद्य में होते है उनके लिये जगत् मे कुछ भी अमाध्य नहीं है। विद्या, बुद्धि, कर्म-दृष्टि, सन्यास, सिद्धि और माश्रय देना प्रभृति गुणो में से एक भी हो तो वैद्य के लिये पर्याप्त होता है । यदि सभी हो तो फिर उनका क्या पूछना । वह सर्वश्रेष्ठ वैद्य है और नर्व जीवो को मुख पहुँचाने वाला होता है । वैद्य की वृत्ति चार प्रकार को मानी जाती है लोक में भी, जीवदया ( रोगी के ऊपर दया का भाव ), शक्य या अपनी चिकित्मा द्वारा माध्य रोगो में प्रीति ( Interest) तथा मरे हुए व्यक्तियो में उपेक्षा का भाव ये चार वैद्य की वृत्तियाँ है। नात्मार्थ नारि कामार्थमथ भूतदयां प्रति । वर्तते यश्चिकित्सायां स सबमतिवर्तते ॥ भिपग्वुभूपुमतिमानतः स्वगुणसम्पदि । पर प्रयत्नमातिप्टेत् प्राणदः स्याद्यथा नृगाम् ।। रोगमादी परीक्षेत ननोऽनन्तग्मौपधम् । ततःकर्म भिषक् पश्चाज ज्ञानपूर्व समाचरेत् ॥ विद्या वितर्का विज्ञानं स्मृतिस्तत्परता क्रिया । यस्यते पड्गुणास्तस्य न साध्यमतिवत्तते ।। विद्या मतिः कमष्टिरभ्यासः सिद्धिराश्रयः । वैद्यशब्दाभिनिष्पात्तावलमेकैक्रमप्यतः ॥ अस्य त्वेते गुगाः सर्वे सन्ति विद्यादयः शुभाः। स बंद्यशब्द सद्भूतमहन् प्राणिमुखप्रदः ।। मंत्री कारुण्यमार्तेषु शक्ये प्रीतिरुपेक्षणम् । प्रकृतिस्थेषु भूतेषु वैद्यवृत्तिश्चतुर्विधा ।। (च.) मुश्रुत में वैद्य के लिये लिखा है कि उसे “कटे हुए, छोटे-छोटे नख-केश वाला और माफ सुथरा होना चाहिये, सफेद कपड़े के परिवान वारण करना चाहिये, वैग अनुद्धत होना चाह्येि, प्रसन्न मन ने दूसरे का कल्याण चाहने वाला, किसी को निन्दा न करते हुए सभी के प्रति मंत्री भाव से रहना चाहिये ।" (7) द्रव्य या ऑपधि के बारे में ऊपर मे पर्याप्त कहा जा चुका है। यहाँ पर सभेपत. उसके चार गणो का उल्लेख मात्र करना ही लक्ष्य है। श्रेष्ट मोपवि वह है जिसको बहुत प्रकार की कल्पनायें (बनावट ) वनाई जा सकें, जो अच्छे परिणामो से युक्त हो तया जिमका रोग के अनुसार प्रयोग उचित हो।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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