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________________ तृतीय खण्ड प्रथम अध्याय १६७ व्यापार ) का अतियोग, हीन योग या मिथ्या योग रोग पैदा करने का मूल कारण है तथा इनका सम्यक योग आरोग्य का प्रधान कारण है। "कालार्थकर्मणां योगो हीनमिथ्यातिमात्रकः । सम्यग् योगश्च विज्ञेयो रोगारोग्यैककारणम् ॥" अथवा इस प्रकार भी कहा जा सकता है काल (शीत, उष्ण एव वर्षा प्रभृति ऋतु), बुद्धि (प्रज्ञा का अपराध या दोष अधर्म आदि) तथा इन्द्रियार्थों ( कर्मेन्द्रिय तथा ज्ञानेन्द्रियो के कर्म) का अति योग, अयोग एव मिथ्या योग ये तीन प्रकार के कारण विविध प्रकार के मानस एव शरीर गत रोगो के उत्पादक होते है। कालबुद्धीन्द्रियार्थानां योगो मिथ्या न चाति च । द्वयाश्रयाणां व्याधीनां त्रिविधो हेतुसंग्रह ॥ (च सू १) दूसरे शब्दो मे धो-धृति एव स्मृति का भ्रश (बुद्धि या प्रज्ञा का अपराध या दोष ), काल तथा कर्म की सम्प्राप्ति ( ऋतु, अवस्था तथा अधर्म या पूर्व जन्म कृत कर्म का समय से प्रकट या व्यक्त होना) तथा असात्म्यागम (असात्म्य अर्थों-इन्द्रिय-व्यापारो का अनुष्ठान ) ये दु.ख या रोग के सामान्य कारण है। धीधृतिस्मृतिविभ्रंशः सम्प्राप्ति. कालकर्मणाम् । असात्म्यार्थागमाश्चेति ज्ञातव्या दुःखहेतवः ॥ (च शा. १ ) दसरे शब्दो मे इन विविध कारणो को इस प्रकार भी कहा जा सकता है १. असात्म्येन्द्रियार्थ सयोग ( इन्द्रियो का अपने विपयो के साथ अनुचित उपयोग ), प्रज्ञापराध (बुद्धि, धैर्य एव स्मृति के अनुसार कार्य न करना) तथा परिणाम ( काल अधर्म तथा देव का विपरीत होना)। वाय-पित्त तथा कफ ये तीन शरीरगत व्याधियो के पैदा करनेवाले दोष है एव मानसिक व्याधियो के पैदा करने मे दो ही दोष रज और तम भाग लेते है। वायुः पित्तं कफश्चेति शारीरो दोषसग्रह.। मानसः पुनरुद्दिष्टो रजश्च तम एव च ॥ ( च सू १) व्याधि का पर्याय-व्याधि, आमय, गद, भातक, यक्ष्मा, ज्वर, विकार, रोग, पाप्मा, आबाध, तम तथा दु ख । ये रोग के नामान्तर है। इन शब्दो मे आमय सज्ञा सुप्रसिद्ध है। चक्रपाणि ने आमय शब्द की व्युत्पत्ति दिखलाते हए कहा है कि प्राय रोग आम दोष से ही उत्पन्न होते है अत आमय कहलाते हैं -
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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